Search This Blog

Tuesday, 31 January 2017

माता सरस्वती की कथा , मंत्र, वसंत पंचमी पर्व


माता सरस्वती 



माता सरस्वती 

कथा प्रसंग 1:

माँ सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं। सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेद और माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं। ये ब्रह्मा की स्त्री हैं।सरस्वती माँ के अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी,वाणी, भारतीशुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना आदि कई नामों से जाना जाता है।

कथा प्रसंग 2:

विद्या की यह देवी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थीं कि स्वयं ब्रह्मा भी सरस्वती के आकर्षण से खुद को बचाकर नहीं रख पाए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने पर विचार करने लगे | सरस्वती ने अपने पिता की इस मनोभावना को भांपकर उनसे बचने के लिए चारो दिशाओं में छिपने का प्रयत्न किया लेकिन उनका हर प्रयत्न बेकार साबित हुआ। इसलिए विवश होकर उन्हें अपने पिता के साथ विवाह करना पड़ा।ब्रह्मा और सरस्वती करीब 100 वर्षों तक एक जंगल में पति-पत्नी की तरह रहे। इन दोनों का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया था स्वयंभु मनु।

कथा प्रसंग 3:

मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा अपनी ही बनाई हुई रचना, सरवस्ती के प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी दृष्टि डाले रखते थे। ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए सरस्वती चारो दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं। इसलिय सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्मा ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला और उनसे सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया।सरस्वती से विवाह करने के पश्चात सर्वप्रथम मनु का जन्म हुआ। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है।

कथा प्रसंग 4:

लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा नारायण के निकट निवास करती थीं। एक बार गंगा ने नारायण के प्रति अनेक कटाक्ष किये। नारायण तो बाहर चले गये किन्तु इससे सरस्वती रुष्ट हो गयी। सरस्वती को लगता था कि नारायण गंगा और लक्ष्मी से अधिक प्रेम करते हैं। लक्ष्मी ने दोनों का बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया। सरस्वती ने लक्ष्मी को निर्विकार जड़वत् मौन देखा तो जड़ वृक्ष अथवा सरिता होने का शाप दिया। सरस्वती को गंगा की निर्लज्जता तथा लक्ष्मी के मौन रहने पर क्रोध था। उसने गंगा को पापी जगत का पाप समेटने वाली नदी बनने का शाप दिया। गंगा ने भी सरस्वती को मृत्युलोक में नदी बनकर जनसमुदाय का पाप प्राक्षालन करने का शाप दिया। तभी नारायण भी वापस आ पहुँचे। उन्होंने सरस्वती का आर्लिगन कर उसे शांत किया तथा कहा—“एक पुरुष अनेक नारियों के साथ निर्वाह नहीं कर सकता। परस्पर शाप के कारण तीनों को अंश रूप में वृक्ष अथवा सरिता बनकर मृत्युलोक में प्रकट होना पड़ेगा। लक्ष्मी! तुम एक अंश से पृथ्वी पर धर्म-ध्वज राजा के घर अयोनिसंभवा कन्या का रूप धारण करोगी, भाग्य-दोष से तुम्हें वृक्षत्व की प्राप्ति होगी। मेरे अंश से जन्मे असुरेंद्र शंखचूड़ से तुम्हारा पाणिग्रहण होगा। भारत में तुम ‘तुलसी’ नामक पौधे तथा पदमावती नामक नदी के रूप में अवतरित होगी। किन्तु पुन: यहाँ आकर मेरी ही पत्नी रहोगी। गंगा, तुम सरस्वती के शाप से भारतवासियों का पाप नाश करने वाली नदी का रूप धारण करके अंश रूप से अवतरित होगी। तुम्हारे अवतरण के मूल में भागीरथ की तपस्या होगी, अत: तुम भागीरथी कहलाओगी। मेरे अंश से उत्पन्न राजा शांतनु तुम्हारे पति होंगे। अब तुम पूर्ण रूप से शिव के समीप जाओ। तुम उन्हीं की पत्नी होगी। सरस्वती, तुम भी पापनाशिनी सरिता के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होगी। तुम्हारा पूर्ण रूप ब्रह्मा की पत्नी के रूप में रहेगा। तुम उन्हीं के पास जाओ।’’ उन तीनों ने अपने कृत्य पर क्षोभ प्रकट करते हुए शाप की अवधि जाननी चाही। कृष्ण ने कहा—“कलि के दस हज़ार वर्ष बीतने के उपरान्त ही तुम सब शाप-मुक्त हो सकोगी।’’ सरस्वती ब्रह्मा की प्रिया होने के कारण ब्राह्मी नाम से विख्यात हुई।

कथा प्रसंग 5:

सृष्टि निर्माण का काम पूरा होने के बाद एक दिन पवित्र उद्देश्य को पूरा करने के लिए ब्रह्मा जी ब्रह्मलोक से निलकर पृथ्वी पर पधारे। पृथ्वी पर आकर इन्होंने सबसे उत्तम मुहूर्त में यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन एक समस्या यह थी कि बिना पत्नी के यज्ञ पूरा नही हो सकता था। ब्रह्मा जी शुभ मुहूर्त को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते थे। इसलिए संसार के कल्याण हेतु एक ऐसी कन्या से विवाह कर लिया जो बुद्धिमान होने के साथ ही शास्त्रों का भी ज्ञान रखती थीं। इस कन्या का नाम शास्त्रों और पुराणों में गायत्री बताया गया। गायत्री से विवाह करने के बाद ब्रह्मा जी ने यज्ञ करना शुरु कर दिया। देवी सरस्वती ब्रह्मा जी को तलाश करते हुए तीर्थ नगरी पुष्कर में पहुंची जहां ब्रह्मा जी गायत्री के साथ यज्ञ कर रहे थे। ब्रह्मा जी के साथ दूसरी स्त्री को देखकर देवी सरस्वती क्रोधित हो उठी और ब्रह्मा जी को शाप दे दिया कि कि पृथ्वी के लोग ब्रह्मा को भुला देंगे और कभी इनकी पूजा नहीं होगी। किन्तु अन्य देवताओं की प्रार्थना पर सरस्वती का क्रोध कम हुआ और उन्होने कहा कि ब्रह्मा जी केवल पुष्कर में पूजे जाएंगे।

------------------------------------------------------------------------------- 

शिक्षा व् अध्ययन के क्षेत्र काम कर रहे लोगो, विद्यार्थियों को माता सरस्वती की आराधना करनी चाहिए |
वे लोग जो मंदबुद्धि है ,जिन्हें भूलने की बीमारी है ,उन्हें भी माता सरस्वती की पूजा करनी चाहिए |


माता सरस्वती 

मां सरस्वती का श्र्लोक :-


पहले ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र का जाप करें। 

ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।  रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।

 वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।

देवी सरस्वती का मूल मंत्र है : -

'शारदा शारदाभौम्वदना। वदनाम्बुजे।सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रिया तू।'

अन्य सरस्वती देवी के मंत्र 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:|
ॐ श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।
ॐ महाविद्यायै नम: |
ॐ वाग्देव्यै नम: |
ॐ ज्ञानमुद्रायै नम: |

 सरस्वती देवी की स्तुति 

या कुंदेंदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना !
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ! 

अर्थ :-

जो चन्द्रमा समान मुखमंडल लिए, हिम जैसे श्वेत कुंद फूलों के हार और शुभ्र वस्त्रों से अलंकृत हैं ,जो हाथों में श्रेष्ठ वीणा लिए श्वेत कमल पर विराजमान हैं,ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवगण भी जिनकी सदैव स्तुति करते हैं ,हे मां भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी मानसिक जड़ता को दूर करो,हे सर्वत्र-विद्यमान विद्या देवी, आपको मेरा बार-बार नमस्कार |


सरस्वती माता का रक्षा मंत्र तथा स्तुति 

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥

अर्थ :-

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥



माता सरस्वती 

सरस्वती मंत्र


सरस्वती मंत्र  बीज मंत्र " ऐं " है।

 द्वयक्षर सरस्वती मंत्र -  

1. आं लृं  2. ऐं लृं

 त्र्यक्षर सरस्वती मंत्र -     

ऐं रुं स्वों।

चतुर्क्षर सरस्वती मंत्र 

ॐ ऐं नमः।

नवाक्षर सरस्वती मंत्र -

ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः

 दशाक्षर सरस्वती मंत्र -

1. - वद वद वाग्वादिन्यै स्वाहा
2.- ह्रीं ॐ ह्रसौं ॐ सरस्वत्यै नमः।

एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र -

ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः।


एकादशाक्षर-चिन्तामणि-सरस्वती मंत्र -

ॐ ह्रीं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः।


एकादशाक्षर-पारिजात-सरस्वती मंत्र

1.- ॐ ह्रीं ह्सौं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः |
2.- ॐ ऐं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः।


द्वादशाक्षर सरस्वती मंत्र -

ह्रीं वद वद वाग्-वादिनि स्वाहा ह्रीं


अन्तरिक्ष-सरस्वती मंत्र-

ऐं ह्रीं अन्तरिक्ष-सरस्वती स्वाहा।


षोडशाक्षर सरस्वती मंत्र

ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।
सरस्वती महाभागे विद्ये कमल लोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्या देहि नमोस्तुते !



सरस्वती माता का शाबर मंत्र -


" ॐ नमो सरस्वती विद्या नमो कंठ विराजो
आप भुला अक्षर कंठ करें हृदय विराजो आप
ॐ नमो स्वः ठ:ठ:ठ:  "


No comments:

Post a Comment