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Saturday, 19 November 2016

शाबर सिद्धियां


siddhi

शाबर सिद्धियां ,Siddhi 

सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना
 व सफलता की अनुभूति मिलना. सिद्धि को प्राप्त करने का मार्ग एक कठिन मार्ग हो ओर जो इन
 सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की पूर्णता को पा लेता है. 
असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है.
 चमत्कारिक साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे -
 दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति
 प्राप्त कर लेना इत्यादि. 'सिद्धि' इसी अर्थ में प्रयुक्त होती है.


शास्त्रों में अनेक सिद्धियों की चर्चा की गई है और इन सिद्धियों को यदि नियमित और अनुशासनबद्ध रहकर किया जाए तो अनेक प्रकार की परा और अपरा सिद्धियाँ प्राप्त कि जा सकती है. सिद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा. यह सिद्धियां इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं. सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियां कहलाती है . मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं. इन सिद्धियों को पाने के उपरांत साधक के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.


देवी दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री मुख्य नो सिद्धियों को प्रदान करने
सिद्धिदात्री : मां दुर्गा का नौवां रूप ... का सामर्थ्य रखती है ,भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह
 तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं |हनुमान चालीसा की एक चौपाई 
 जिसमे तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तो को 
आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते
 हैं ऐसा सीतामाता ने उन्हे वरदान दिया |


सिद्धियां क्या हैं व इनसे क्या हो सकता है इन सभी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्राप्त होता है जो इस प्रकार है:- अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:।।


यह आठ मुख्य सिद्धियाँ इस प्रकार हैं:-

अणिमा सिद्धि |                                  



अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता ही अणिमा है. 
ast siddhi dharak hanuman jiयह सिद्धि यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त हो कर व्यक्ति 
सूक्ष्म रूप धर कर एक प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो
 जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु रुप 
में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति
 से सम्पन्न हो साधक वीर व बलवान हो जाता है. अणिमा
 की सिद्धि से सम्पन्न योगी अपनी शक्ति द्वारा अपार बल पाता है |.इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला


महिमा सिद्धि |



अपने को बड़ा एवं विशाल बना लेने की क्षमता को महिमा कहा जाता है. यह आकार को विस्तार देती है विशालकाय स्वरुप को जन्म देने में सहायक है. इस सिद्धि से सम्पन्न होकर साधक प्रकृति को विस्तारित करने में सक्षम होता है. जिस प्रकार केवल ईश्वर ही अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं उसी प्रकार साधक भी इसे पाकर उन्हें जैसी शक्ति भी पाता है.

जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।

गरिमा सिद्धि |



hanuman bheem milapइस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है. यह सिद्धि साधक को अनुभव कराती है कि उसका वजन या भार उसके अनुसार बहुत अधिक बढ़ सकता है जिसके द्वारा वह किसी के हटाए या हिलाए जाने पर भी नहीं हिल सकता .| गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे।



लघिमा सिद्धि |

लघिमा सिद्धि |
स्वयं को हल्का बना लेने की क्षमता ही लघिमा सिद्धि होती है. लघिमा सिद्धि में साधक स्वयं को अत्यंत हल्का अनुभव करता है. इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है.| जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।
प्राप्ति सिद्धि |


कुछ भी निर्माण कर लेने की क्षमता इस सिद्धि के बल पर वह असंभव होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है. जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी प्राप्त हो सकता है या अमृत की चाह को भी पूरा कर पाने में वह सक्षम हो जाता है केवल इसी सिद्धि द्वारा ही वह असंभव को भी संभव कर सकता है.| रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।


प्राकाम्य सिद्धि

प्राकाम्य सिद्धि |

कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता प्राकाम्य सिद्धि की प्राप्ति है. इसके सिद्ध हो जाने पर मन के विचार आपके अनुरुप परिवर्तित होने लगते हैं. इस सिद्धि में साधक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति का अनुभव करता है. इस सिद्धि को पाने के बाद मनुष्य जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसे पाने में कामयाब रहता है. व्यक्ति चाहे तो आसमान में उड़ सकता है और यदि चाहे तो पानी पर चल सकता है. | इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे।

ईशिता सिद्धि |



हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना ही इस सिद्धि का अर्थ है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक समस्त प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है. सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आदेश के अनुसार किसी पर भी अधिकार जमाय अजा सकता है. वह चाहे राज्यों से लेकर साम्राज्य ही क्यों न हो.


इस सिद्धि को पाने पर साधक ईश रुप में परिवर्तित हो जाता है.ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा।

वशिता सिद्धि |



जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता को वशिता या वशिकरण कही जाती है. इस सिद्धि के द्वारा जड़, चेतन, जीव-जन्तु, पदार्थ- प्रकृति, सभी को स्वयं के वश में किया जा सकता है. इस सिद्धि से संपन्न होने पर किसी भी प्राणी को अपने वश में किया जा सकता है.







शाबर सिद्धियां


नाथ पंथ में मशहूर सिद्धियों का वर्णन करना भगवान शिव के महात्मय को कहने के बराबर है ,

मतलब वे है तो बहुत ज्यादा पर उनमे से प्रमुख का ही वर्णन इस प्रकार ह




धूणा सिद्धि


धूणा सिद्धिइस तरह की सिद्धि में पांचं 5 ,बत्तीस ३२, इकतालीस ४१ ,या एक सौ आठ १०८ धूने जागृत करके उनमे तपस्या की जाती है |

जितने धुनें जागृत रखे जाते है ,उन के हिसाब से साधक को मान सम्मान मिलता है |

और सिद्धिया प्राप्त होती है ,साधना की समाप्ति पर भंडारे का आयोजन किया जाता है |

उसमे आने वाले साधु संतो को मर्यादा के अनुसार कम्बल, वस्त्र, चांदी का सिक्का ,धन सम्पदा का दान किया जाता है |

जल सिद्धि



जल सिद्धिजब कोई साधु बहते हुए जल में घुटने तक ,कटिबंध तक ,नाभि तक ,छाती तक ,या गर्दन तक जल में खड़े होकर सुबह शाम एक निश्चित समय तक मंतर जाप करके सिद्धि प्राप्त करता है उसे जल सिद्धि की संज्ञा दी गयी है | जैसे सुबह और शाम चार चार ४-४ घंटे तपस्या की जाती है | मुख्यतः २१ इक्कीस दिन की तपस्या की जाती है ,परंतु कोई कोई हठयोगी इसे सालों साल करता ह जैसे १२ बारह साल के लिए या पांच ५ साल के लिए |




पवन सिद्धि

ये सिद्धि मनुष्य की सामर्थ्यता पर निर्भर करती है ,इसमें मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है ,जैसे पानी पर चलना ,उड़ना ,कुछ समय के लिए शरीर त्याग देना इत्यादि |

पवन सिद्धिइस प्रक्रिया में श्री भगवत देवी महापुराण में वर्णित योगाभ्यास का प्रयोग करके ,पहले अपने शरीर पर नियंत्रण रखता है ,साधना की शुरुआत में दोनों समय के खाने में थोड़ी धोड़ी कटौती की जाती है

फिर एक समय ही भोजन खाया जाता है ,फिर कंद मूलो पर गुजारा किया जाता है ,इसके बाद भोजन बिलकुल बंद कर दिया जाता है | इसमें साधक अपने पंचभूतो पर विजय पाने के लिए ही ये साधना करता है | प्राप्त जानकारी के अनुसार इस साधना को सिर्फ गोरखनाथ और आदिनाथ जी ने किया था |




सूर्य चंद्र सिद्धि


सूर्य चंद्र सिद्धिचंद्र सिद्धि की साधना के दौरान साधक चंद्रोदय से चन्द्रास्त तक साधना में लीन रहते है ,इस श्रेणी के साधक मुख्यतः लंगोट ही धारण करते है | ये साधक भोजन भी चाँद को अर्घ्य देकर ही ग्रहण करते है | इस साधना से साधक के मन में धैर्य शीतलता का वास होता है ,अन्य शक्तिया भी प्राप्त होती है | इसी तरह सूर्य साधक भी होते है | लेकिन उनमे क्रोध, तेज ,तामसिकता का गौण विद्यमान होता है |सूर्य साधना का वर्णन सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में मिलता ह |




पृथ्वी तेज सिद्धि

पृथ्वी तेज सिद्धि
कुछ योगी अवधूत जमीन के नीचे गड्ढा खोदकर उसे ऊपर से छोटे कमरे जैसा रूप देकर उसमे साधना सिद्धि करते है | कुछ इसे समय निर्धारित करके करते है जैसे २१ इक्कीस दिन या ४१ इकतालीस दिन के लिए |





झूला खड़ी साधना

झूले खड़ी की साधना

झूले की साधना में साधक निर्धारित दिनों के लिए झूले पर ही रहता है | इस साधना के दौरान पैर व् टाँगे सूज कर बड़ी बड़ी हो जाती है |


कड़ी साधना के दौरान साधक कभी भी नही बैठता | यह २१ इक्कीस ,४१ इकतालीस ,१०८ एक सौ आठ ,६ छह महीने ,एक १ साल या इससे ज्यादा समय की भी हो सकती है |