सहदेवी बूटी
ये देवीय जड़ी है
सहदेवी एक छोटा सा कोमल पौधा होता है जो एक फुट से साढ़े तीन फुट तक की ऊँचाई का होता है। इसमें कई दिव्य गुण हैं जिसके कारण इसे देवी पद मिला और इसका नाम सहदेवी पड़ा |
किसी रवि-पुष्य योग के दिन प्रात: सूर्योदय पूर्व शास्त्रीय विधि पूर्वक एक दिन पूर्व संध्याकाल में निमंत्रण देकर प्राप्त कर लें फिर घर लें आये और पंचामृत से स्नान कराकर उसकी विधिवत षोडशोपचार पूजा करें।
पूजन मन्त्र
"ॐ नमो भगवती सहदेवी सदबलदायिनी सर्वंजयी कुरु कुरु स्वाहा।"
यदि कोई विशेष प्रयोजन न हो तो उपरोक्त विधि से पूजित पौधे के स्वरस में शुद्ध केसर और शुद्ध गोरोचन मिलाकर गोली बना कर सुरक्षित रख लें। जब कभी आवश्यकता हो गंगाजल में घिस कर उसका तिलक करें। ये चमत्कारी प्रभाव और सर्वत्र विजय देने वाला जगत मोहन प्रयोग है।
1. शांति, धन-धान्य-व्यापार वृद्धि के लिए :-
* विधिवत सिद्ध की हुई जड़ को लाल वस्त्र में लपेट कर तिजोरी मे रखने से अभीष्ट धन-वृद्धि होती है l
* रसोई अनाज भंडार में शुद्ध स्थल पर स्थापित करने से अन्न परिपूर्ण रहता है।
* घर के मंदिर में स्थापित कर नित्य प्रणाम करने से घर में शांति रहती है।
2. विवाद विजय
यदि किसी प्रकार के विवाद में फंस जाएँ और निर्णय के लिए जाना हो तो इसकी विधिवत सिद्ध की हुई जड़ को धारण करने पर निश्चित ही विजय प्राप्त होती है।
3. प्रभाव-वृद्धि
पंचाग का चुर्ण तिलक की भाति मस्तक और जिह्वा पर लगा कर कही जाए तो दर्शको पर विशेष प्रभाव पड़ता हैl सब लोग इसको सम्मान की दृष्टी से देखते और सुनते है l
4. मोहन प्रयोग
* इस पौधे की जड़ का अंजन लगाने से दृष्टी मे मोहक-प्रभाव उत्पन्न होता है l
* तुलसी के बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीस कर तिलक के रूप में उसे ललाट पर लगाएं। उससे उसको देखने वाले मोहित हो जाते हैं।
* अपामार्ग-ओंगा, भांगरा, लाजा, धान की खोल और सहदेवी इनको पीस कर उसका तिलक करने से व्यक्ति तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।
मन्त्र -
इन प्रयोगों की सिद्धि के लिए अग्रिम दिए हुए मंत्रों के दस हजार जप करने से लाभ होता है।
”ॐ नमो भगवते रुद्राय सर्वजगन्मोहनं कुरु कुरु स्वाहा।“
अथवा
”ॐ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्य यश्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।"
* सहदेवी को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें तथा उसे पान में डाल कर खिलाएं तो सभी का वशीकरण हो जाता है।
* गोरोचन और सहदेवी को मिलाकर उसका तिलक करने वाला सब को वश में कर लेता है।
एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशतजपात् प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।।
”ॐ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्य यश्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।"
5. वशीकरण प्रयोग
* सहदेवी को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें तथा उसे पान में डाल कर खिलाएं तो सभी का वशीकरण हो जाता है।
* गोरोचन और सहदेवी को मिलाकर उसका तिलक करने वाला सब को वश में कर लेता है।
वशीकरण मंत्र
”ॐ नमो नारायणाय सर्वलोकान् मम वशं कुरु कुरु स्वाहा।“एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशतजपात् प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।।
एक लाख जप से यह मंत्र सिद्ध होता है और प्रयोग के समय इस मंत्र का 108 बार जप करके प्रयोग करने से सफलता मिलती है।
अयुत जपात् मंत्रः सिद्धो भवति। अष्टोत्तर शत जपात् प्रयोगः सिद्धो भवति।
उपर्युक्त मंत्र का दस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और आवश्यकता होने पर एक सौ आठ बार जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र – ‘अमुकस्य’ के स्थान पर जिसके आसन पर स्तंभन करना हो उसका नाम लेना चाहिए।
* अपामार्ग और सहदेई को लोहे के पात्र में डालकर पींसें और उसका तिलक मस्तक पर लगाएं। अब जो भी देखेगा उसका स्तंभन हो जाएगा।
* भांगरा, चिरचिटा, सरसों, सहदेई, कंकोल, वचा और श्वेत आक इन सबको समान मात्रा में लेकर कूटें और सत्व निकाल लें। फिर किसी लोहे के पात्र में रखकर तीन दिनों तक घोटें। अब
जब भी उसका तिलक कर शत्रु के सम्मुख जाएंगे, तो उसकी बुद्धि कुंठित हो जाएगी।
* इसकी जड़ को भुजा में बाँधने से विभिन्न व्याधियां और रोग स्वतः नष्ट हो जाते हैं।
* सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है।
* सहदेवी का पौधा नींद न आने वाले मरीजों के लिए सबसे अच्छा है . इसे सुखाकर तकिये के नीचे रखने से अच्छी नींद आती है
* इसके नन्हे पौधे गमले में लगाकर सोने के कमरे में रख दें . बहुत अच्छी नींद आएगी .
* यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है . बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है . इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें . यह लीवर के लिए भी बहुत अच्छा है .
* अगर रक्तदोष है , खाज खुजली है , त्वचा की सुन्दरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पावडर खाली पेट लें .
* अगर आँतों में संक्रमण है , अल्सर है या फ़ूड poisoning हो गई है , तो 2 ग्राम सहदेवी और 2 ग्राम मुलेटी को मिलाकर लें
* अगर मूत्र संबंधी कोई समस्या है तो एक ग्राम सहदेवी का काढ़ा लिया जा सकता है .
* कंठमाला रोग में इसकी जड़ गले में बांधने से शीघ्र रोग मुक्ति होती है।
किसी कटे हुए स्थान पर इसका रस लगते ही खून बंद हो कर घाव अच्छा हो जाता है।
* यदि कोई स्त्री मासिक-धर्म से पांच दिन पूर्व तथा पांच दिन पष्चात तक गाये के घी मे सहदेवी का पंचाग सेवन करे तो अवश्य गर्भ सिथर होता है l
* इसको दूध में पीस कर नस्य लेने से स्वस्थ संतान पैदा होती है।
6. शत्रु स्तम्भन प्रयोग
* ‘‘ऊँ नमो दिगंबराय अमुकस्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा।अयुत जपात् मंत्रः सिद्धो भवति। अष्टोत्तर शत जपात् प्रयोगः सिद्धो भवति।
उपर्युक्त मंत्र का दस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और आवश्यकता होने पर एक सौ आठ बार जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र – ‘अमुकस्य’ के स्थान पर जिसके आसन पर स्तंभन करना हो उसका नाम लेना चाहिए।
* अपामार्ग और सहदेई को लोहे के पात्र में डालकर पींसें और उसका तिलक मस्तक पर लगाएं। अब जो भी देखेगा उसका स्तंभन हो जाएगा।
* भांगरा, चिरचिटा, सरसों, सहदेई, कंकोल, वचा और श्वेत आक इन सबको समान मात्रा में लेकर कूटें और सत्व निकाल लें। फिर किसी लोहे के पात्र में रखकर तीन दिनों तक घोटें। अब
जब भी उसका तिलक कर शत्रु के सम्मुख जाएंगे, तो उसकी बुद्धि कुंठित हो जाएगी।
7. अग्नि स्तम्भन
सहदेवी, घृतकुमारी और आक के रस को मिलाकर लेपन करने से अग्नि स्तंभित होती है। उक्त मिश्रण को हाथ में लगाकर यदि अग्नि में भी हाथ डाल दें तो हाथ नहीं जलेगा। ऐसा तंत्र ग्रंथों में वर्णित है।
8. आयुर्वेद
* इसकी जड़ को भुजा में बाँधने से विभिन्न व्याधियां और रोग स्वतः नष्ट हो जाते हैं।
* सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है।
* सहदेवी का पौधा नींद न आने वाले मरीजों के लिए सबसे अच्छा है . इसे सुखाकर तकिये के नीचे रखने से अच्छी नींद आती है
* इसके नन्हे पौधे गमले में लगाकर सोने के कमरे में रख दें . बहुत अच्छी नींद आएगी .
* यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है . बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है . इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें . यह लीवर के लिए भी बहुत अच्छा है .
* अगर रक्तदोष है , खाज खुजली है , त्वचा की सुन्दरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पावडर खाली पेट लें .
* अगर आँतों में संक्रमण है , अल्सर है या फ़ूड poisoning हो गई है , तो 2 ग्राम सहदेवी और 2 ग्राम मुलेटी को मिलाकर लें
* अगर मूत्र संबंधी कोई समस्या है तो एक ग्राम सहदेवी का काढ़ा लिया जा सकता है .
* कंठमाला रोग में इसकी जड़ गले में बांधने से शीघ्र रोग मुक्ति होती है।
किसी कटे हुए स्थान पर इसका रस लगते ही खून बंद हो कर घाव अच्छा हो जाता है।
9. संतान-लाभ
* यदि कोई स्त्री मासिक-धर्म से पांच दिन पूर्व तथा पांच दिन पष्चात तक गाये के घी मे सहदेवी का पंचाग सेवन करे तो अवश्य गर्भ सिथर होता है l
* इसको दूध में पीस कर नस्य लेने से स्वस्थ संतान पैदा होती है।
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