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Tuesday, 14 February 2017

शिवरात्रि व्रत कथा , व्रत रखने , उद्यापन करने का विधान ( Shivratri special )



https://shabarmantars.blogspot.in/2017/02/shivratri-special.html शिवरात्रि की कथा , व्रत रखने , उद्यापन करने का विधान





समुद्र मंथन की कथा धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव आदि) हो गया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया और ये भी बताया कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे। यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया। समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वन्तरि सहित 14 रत्न निकले।

शिवरात्रि व्रत कथा , व्रत रखने , उद्यापन करने का विधान https://shabarmantars.blogspot.in/2017/02/shivratri-special.html

समुद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया।, सब देवी देवता डर गये कि अब दुनिया तबाह हो जायेगी| इस समस्या को लेकर सब देवी देवता शिव जी के पास गये, शिव ने वह जहर पी लिया और अपने गले तक रखा, निगला नही,शिव का गला नीला हो गया और उसे नीलकंठ का नाम दिया गया| शिव ने दुनिया को बचा लिया, शिवरात्रि इसलिये भी मनाई जाती है| सबसे बड़ी शिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी होती है। इसे महाशिवरात्रि भी कहा जाता है।पौराणिक मान्यताओं में भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन महाशिवरात्रि, उसके बाद सावन के महीने में आनेवाला प्रत्येक सोमवार, फिर हर महीने आनेवाली शिवरात्रि और सोमवार का महत्व है। लेकिन भगवान को सावन यानी श्रावण का महीना बेहद प्रिय है जिसमें वह अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।

हलाहल विष देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किये गए समुद्र मंथन के समय निकला था। मंथन के फलस्वरूप जो चौदह मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से हलाहल विष सबसे पहले निकला था।






शिवरात्रि के व्रत की कथा


गुरुद्रुह शिकारी

एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक गाँव में एक गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।


 शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।




पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं
, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने
 धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी,
 तब तुम मुझे मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी 
और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।





कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।'शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।'


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शिकारी हँसा और बोला, 'सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।'उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।'मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।




शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,' हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।'मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'




उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।'


शिवरात्रि व्रत को कहर पहरो में करने का विधान (तरीका )

प्रातः काल मे उठकर नित्य कर्मकरने के बाद शिव मंदिर में जाकर बह्ग्वान शिव शंकर की स्तुति करते हुए प्रार्थना करे कि हे महादेव मैं आपका व्रत करने का इच्छुक हूँ  , आप मेरे इस व्रत को सफल होने तथा इस व्रत को करने की आज्ञा दे | और सभी प्रकार के विघ्नों से मेरी रक्षा करे | इसके बाद दश या सोलह उपचारो से शिवलिंग की पूजा करे | यदि नजदीक कोई शिवलिंग न हो तो पार्थिव शिवलिंग का निर्माण  किया जा सकता है | व्रती को चाहिए कि शिव महिमा को पढ़े या सुने | शिवरात्रि को जागरण भी किया जाना शुभ होता है | 

पहले पहर की पूजा का विधान 

सबसे पहले  दश या सोलह उपचारो से शिवलिंग की पूजा करे |इसमें तिल , चावल , गंगा जल ,फूल , चन्दन , धतूरा , भांग , बेलपत्र इत्यादि से हो सकते है | इसके बाद महादेव का पूजन कर पकवानों का भोग लगाए |फिर शिव के सामने भूखो  को भोजन करने का संकल्प ले  ( सामर्थ्य के अनुसार ) | इसके बाद के समय को शिव महिमा का गुणगान करते हुए बिताये |

 दूसरे पहर की पूजा का विधान 

पूजा करने का  वही विधान है | लेकिन इसमें कमल के फूल , तथा जौ की संख्या पहले से दोगुनी होनी चाहिए या जौ का चूरमा चढ़ाना चाहिए | ॐ नमः शिवायः का लगातार जप करे |

तीसरे  पहर की पूजा का विधान

तीसरे  पहर की पूजा में  भी पूजा करने का  वही विधान है | गेंहू का चूरमा चढ़ाना चाहिए साथ में मदार या आक के फूल तीसरे पहर की पूजा में आवश्यक माने गए है |

चौथे  पहर की पूजा का विधान

दश या सोलह उपचारो से शिवलिंग की पूजा करे | मुख्य मिठाइयां , मुंग या उडद का चूरमा चढ़ाना लाभदायक माना गया है | इसके अलावा फलो के रास को भी महत्व दिया गया है |

चौथे पहर में बेलपत्रों को अनगिनत संख्या में चढ़ाना फलदायक होता है | बाकि बचा समय शिव जी गुणगान करने में लगाए | 

शिवरात्रि व्रत को पहरो में करने का विधान (तरीका )

प्रातः काल मे उठकर नित्य कर्मकरने के बाद शिव मंदिर में जाकर बह्ग्वान शिव शंकर की स्तुति करते हुए प्रार्थना करे कि हे महादेव मैं आपका व्रत करने का इच्छुक हूँ  , आप मेरे इस व्रत को सफल होने तथा इस व्रत को करने की आज्ञा दे | और सभी प्रकार के विघ्नों से मेरी रक्षा करे | इसके बाद दश या सोलह उपचारो से शिवलिंग की पूजा करे | यदि नजदीक कोई शिवलिंग न हो तो पार्थिव शिवलिंग का निर्माण  किया जा सकता है | व्रती को चाहिए कि शिव महिमा को पढ़े या सुने | शिवरात्रि को जागरण भी किया जाना शुभ होता है | 

पहले पहर की पूजा का विधान 

सबसे पहले  दश या सोलह उपचारो से शिवलिंग की पूजा करे |इसमें तिल , चावल , गंगा जल ,फूल , चन्दन , धतूरा , भांग , बेलपत्र इत्यादि से हो सकते है | इसके बाद महादेव का पूजन कर पकवानों का भोग लगाए |फिर शिव के सामने भूखो  को भोजन करने का संकल्प ले  ( सामर्थ्य के अनुसार ) | इसके बाद के समय को शिव महिमा का गुणगान करते हुए बिताये |

 दूसरे पहर की पूजा का विधान 

पूजा करने का  वही विधान है | लेकिन इसमें कमल के फूल , तथा जौ की संख्या पहले से दोगुनी होनी चाहिए या जौ का चूरमा चढ़ाना चाहिए | ॐ नमः शिवायः का लगातार जप करे |

तीसरे  पहर की पूजा का विधान

तीसरे  पहर की पूजा में  भी पूजा करने का  वही विधान है | गेंहू का चूरमा चढ़ाना चाहिए साथ में मदार या आक के फूल तीसरे पहर की पूजा में आवश्यक माने गए है |

चौथे  पहर की पूजा का विधान

दश या सोलह उपचारो से शिवलिंग की पूजा करे | मुख्य मिठाइयां , मुंग या उडद का चूरमा चढ़ाना लाभदायक माना गया है | इसके अलावा फलो के रास को भी महत्व दिया गया है |चौथे पहर में बेलपत्रों को अनगिनत संख्या में चढ़ाना फलदायक होता है | बाकि बचा समय शिव जी गुणगान करने में लगाए



शिवरात्रि व्रत का उद्यापन करने का विधान 

शास्त्रो के अनुसार  शिवरात्रि का व्रत चौदह साल तक करना चाहिए ,पंद्रहवे साल में इसका उद्यापन करना चाहिए |

विधि यह है -
त्रयोदशी के दिन संयमपूर्वक रहे तथा चतुर्दर्शी के दिन निर्जल व्रत धारण करने का विधान है | किसी शिवालय में या घर में ही दिव्य मंडल की रचना करे | मंडल के मध्य में सर्वतोभद्र चक्र का निर्माण करे | अक्षत से निर्माण करना फलदायक होता है | इसके बाद आठ लिंगतोभद्र कैनक्रो पर आठ कलशों की प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए | इसके बाद फूल तथा वस्त्रो से अलंकरण करना चाहिए | कलश के ऊपर शिव पार्वती की नंदी सहित प्रतिमा स्थापना करनी चाहिए | रात्रि में चारो पहर महादेव का षदोषोचार से पूजन करना चाहिए | रात बाहर शिव स्तुति करे | सुबह को स्नान करके षोडशोचार पूजन करे | योग्य विद्वान से पूजा सम्पन कराये | जरूरतमंदों को भोजन ,वस्त्र , आभूषण इत्यादि का दान करे |  सबसे अधिक अपने पुरोहित को दान दे | फिर उनकी आज्ञा से परिवार सहित भोजन करे | इस तरीके से व्रत का उद्यापन करना चहिये |