Search This Blog

Sunday, 27 November 2016

रक्षा मंत्र,Raksha Mantar

किसी भी कार्य को  सिद्ध करने  के लिए मनुष्य का दिल से उस काम पर ध्यान लगाना जरुरी होता है | लेकिन ज्यादातर मामलो में लोगो का अंधाधुंध अनुसरण करने पर बाद में विभिन्न प्रकार की परेशानियों प्रयोग नहीं करता ,उसे भी अलौकिक अनुभवो का सामना हो सकता है | इस संद्धर्भ में हम  यहाँ कुछ मंत्रों का विवरण दे रहे है -

suraksha tantrik


सांप ,आसमानी बिजली ,बाघ तथा चोर से

  सुरक्षा का माँ कालिका व् शिवजी का मंत्र

  सुरक्षा का माँ कालिका व् शिवजी का मंत्र

मंत्र

बाघ बिजुलि सर्प चोर
चारिउ बाँधौ एक थोड़
धरती माता
आकाश पिता
रक्ष रक्ष श्री परमेश्वरी कालिका
की वाचा
दुहाई महादेव की |


प्रयोग विधि

इस मंत्र को तीन बार पढ़कर तीन बार ताली बजाने से  सांप ,आसमानी बिजली ,बाघ तथा चोर से सुरक्षा होती है |



तांत्रिको के लिए हनुमान जी का मंत्र

 ॐ नमः वज्र का कोठा
जिसमे पिण्ड हमारा पेठा
ईश्वर कुंजी
बर्ह्म का ताला
मेरे आठो याम का यति हनुमंत रखवाला |

विधि

 तीन बार पढने से पूर्ण सुरक्षा होती है

श्री राम जी का सुरक्षा मंत्र

श्री राम जी का सुरक्षा मंत्र
रामकुंडली ब्रह्मचाक
तेतीस कोटि देवा देवा अमुक की बेड़ियाँ
अमुकेर अंकेर बाण काटम
शर काटम
संधाम काटम
कुज्ञान काटम
कारवने काटे
राजा रामचंद्रेर आज्ञा
एई झंडी अमुकेर अंगे शीघ्र लागूगे

विधि

 इस मंत्र का उच्चारण करके चारो और रेखा खींचने से रक्षा होती है |


मंत्र


झाड़ी झाड़ी कापडपिंडी
वीर मुष्टे बाँधीबाल
बुले  एलाम मशाल भूम होते भैरव
कटार हाते
लोहार बाड़ी
बेम हाते चामदडी
आज्ञा दिल राजा चूड़म हाते
लोहार किला मुद्गर धिनी
विग्ली घुंडिकार आज्ञे राजा चूडंगर  आज्ञे
विग्ली घुंडि


विधि
 सात बार पढ़कर अपने चारो और रेखा खींच ले

गोरखनाथ  रक्षा मंत्र

गोरखनाथ  रक्षा मंत्र

ॐ नमो धरती माता ,धरती पिता
धरती धरै न धीर |
बाजै सिंगी
बाजै तरतरी
आया गोरखनाथ
मीन का पूत
मूँज का छड़ा
लोहे का कड़ा
हमारी पीठ पीछे हनुमान जति खड्या
शब्द साच्चा
फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा


प्रयोग

तीन बार मंत्र पढ़कर  अपनी देह  को सर से पांव तक स्पर्श कर ले |

सुरक्षा का माँ कालिका  मंत्र

ॐ कलिका खडग खप्पड़ लिए ठाढ़ी
जोत तेरी है निराली
पीती भर भर रक्त पियाली कर भक्तो की रखवाली
न कर रक्षा तो महाबली भैरव की दुहाई

प्रयोग
इसके तीन बार उच्चारण करने के पश्चात छाती में फूंक मारने से सभी तरह से रक्षा होती है |


चतुर्देव रक्षा मंत्र

raksha mantra of hanuman ,ram ,ganesh and bhairav

ॐ नमो आदेश गुरु  को
वज्र वज्री वज्र किवाड़
वज्री से बांध दशोद्वार
जो घाट घाले
उलट वेद वही को खात
पहली चौंकि गणपति की
दूजी चौंकि हनुमत की
तीजी चौंकि भैरव की
चौथी चौंकि राम रक्षा करने को
श्री नरसिंह देव जी आये
शब्द साँचा
पिंड कांच फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा
सतनाम गुरु जी को आदेश

प्रयोग
तीन बार पढ़कर देह पर फूंक मारने से रक्षा होती है |


सिद्धेश्वरी रक्षा मंत्र

 सिद्धेश्वरी रक्षा मंत्रॐ  अईकलि पुरु सिद्धेश्वरी अवतर अवतर स्वाहा
ॐ दशांगुली भिन्ड्ली
विरुड़ हारि भेरुंड विद्याराणी
रोल बंध ,मुष्टि बंध ,बाण बंध
कृत्य बंध, रूद्र बंध,नख बंध
ग्रह बंध ,प्रेत बंध,भूत बंध
यक्ष बंध ,कंकाल बंध ,बेताल बंध ,आकाश बंध
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण सर्व दिशा बंध
ये और ये आछी कह
हस हस अवतर अवतर अवतर
दशाविप्रराणी दशांगुली शतास्त्र बंदिनी
बंदसि हूँ फट स्वाहा
 

प्रयोग
ये मंत्र पढ़ते पढ़ते लक्ष्मण रखस की तरह अपने चारों और रेखा खीच ले ,सर्व प्रकार से सुरक्षा होगी




शरीर कीलन मंत्र:

सिल्ली सिद्धिर वजुर के ताला,
सात सौ देवी लूरे अकेला,
धर दे वीर,पटक दे वीर,पछाड़ दे वीर,
अरे-अरे विभीषण बल देखो तेरा,
शरीर बाँध दे मेरा,
मेरी भक्ति,गुरु की शक्ति,
फुरो मंत्र ,इश्वरो वाचा!

साधना विधि:
इस मंत्र की साधना आप कभी भी शुरू कर सकते है ! वैसे मंगलवार या शनिवार अच्छा रहता है!  इस मंत्र को आपको रोज़ एक माला पुर्व की तरफ मुख करके रुद्राक्ष की माला से किसी भी आसन का उपयोग कर जपना है
\ और यह साधना मात्र २१ दिनों की हैं!मंत्र जप के वक्त दो अगरबत्ती,कुछ पुष्प और कोई सी भी मिठाई पास रखें! इससे यह मंत्र सिद्ध हो जायेगा!जब भी किसी साधना को शुरू करना हो तो सिर्फ ११ बार यह मंत्र जपें,जिससे आपकी हर विघ्न बाधायों से रक्षा होगी!जय सदाशिव शंकर महाराज की जय!

Thursday, 24 November 2016

हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र

             सर्व कार्य सिद्धि मंत्र

hanuman ji baithe hue


*1. सूर्य की प्रसन्नताव यश-कीर्ति के लिए-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमितविक्रमाय प्रकट-पराक्रमाय महाबलाय सूर्यकोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।


हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र *2. शत्रु पराजय के लिए-* 

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय रामसेवकाय रामभक्तितत्पराय रामहृदयाय लक्ष्मणशक्ति भेदनिवावरणाय लक्ष्मणरक्षकाय दुष्टनिबर्हणाय रामदूताय स्वाहा।


*3. शत्रु पर विजय तथा वशीकरणके लिए-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहरणाय सर्वरोगहराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।


*4. सर्वदुःख निवारणार्थ -* 

हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय आध्यात्मिकाधिदैवीकाधिभौतिक तापत्रय निवारणाय रामदूताय स्वाहा।


*5. सर्वरुपेण कल्याणार्थ-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय देवदानवर्षिमुनिवरदाय रामदूताय स्वाहा।

*6. धन-धान्य आदि सम्पदाप्राप्ति के लिए-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय भक्तजनमनः कल्पनाकल्पद्रुमायं दुष्टमनोरथस्तंभनाय प्रभंजनप्राणप्रियाय महाबलपराक्रमाय महाविपत्तिनिवारणाय पुत्रपौत्रधनधान्यादिविधिसम्पत्प्रदाय रामदूताय स्वाहा।


हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र *7. स्वरक्षा के लिए-* 

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय वज्रदेहाय वज्रनखाय वज्रमुखाय वज्ररोम्णे वज्रदन्ताय वज्रकराय वज्रभक्ताय रामदूताय स्वाहा।


*8. सर्वव्याधि व भय दूरकरने के लिए-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय परयन्त्रतन्त्रत्राटकनाशकाय सर्वज्वरच्छेदकाय सर्वव्याधिनिकृन्तकाय सर्वभयप्रशमनाय सर्वदुष्टमुखस्तंभनाय सर्वकार्यसिद्धिप्रदाय रामदूताय स्वाहा।


*9. भूत-प्रेत बाधा निवारणार्थ -*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय देवदानवयक्षराक्षस भूतप्रेत पिशाचडाकिनीशाकिनीदुष्टग्रहबन्धनाय रामदूताय स्वाहा।

हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र
*10. शत्रु संहार के लिए-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय पूर्वमुखे सकलशत्रुसंहारकाय रामदूताय स्वाहा।


*11. भूत-प्रेत के दमन केलिए-* 

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय दक्षिणमुखेय करालवदनाय नारसिंहाय सकलभूतप्रेतदमनाय रामदूताय स्वाहा।


*12. सकल विघ्न निवारण केलिए -* 

हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय पश्चिममुखे गरुडाय सकलविघ्ननिवारणाय रामदूताय स्वाहा।


*13. सकल सम्पत के लिए-* 

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चमुखाय उत्तरमुखे आदिवराहाय सकलसम्पत्कराय रामदूताय स्वाहा।


हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र *14. सकल वशीकरण के लिए-* 

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय ऊर्ध्वमुखे हयग्रीवास सकलजन वशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।


*15. शत्रु की कुबुद्धि को ठीक करने के लिए-*
 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सव्रग्रहान् भूतभविष्यद्वर्तमानान् समीपस्थान सर्वकालदुश्टबुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय परबलानि क्षोभय क्षोभय मम सर्वकार्याणि साधय साधय स्वाहा।


हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र *16. सर्वविघ्न व ग्रहभयनिवारणार्थ -* 
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय परकृतयन्त्रमन्त्र पराहंकार भूतप्रेत पिशाचपरदृष्टिसर्वविघ्नतर्जनचेटकविद्यासर्वग्रहभयं निवारय निवारय स्वाहा।


*17. जादू टोना का असर दूर करने के लिए-*

 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय डाकिनीशाकिनीब्रह्मराक्षसकुल पिशाचोरुभयं निवारय निवारय स्वाहा।


*18. ज्वर दूर करने के लिए-* 

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय भूतज्वरप्रेतज्वरचातु

र्थिकज्वर विष्णुज्वरमहेशज्वरं निवारय निवारय स्वाहा।

हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र *19. शारीरिक वेदन कष्टनिवृत्ति के लिए-*


 ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय अक्षिशूलपक्षशूल शिरोऽभ्यन्तर शूलपित्तशूलब्रह्मराक्षसशूलपिशाचकुलच्छेदनं निवारय निवारय स्वाहा।

*20. प्रेत बाधा निवारणके लिए-*

 ऊँ दक्षिणमुखाय पंचमुखहनुमते करालवदनाय नारसिंहाय ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा। 

यह मंत्र कम से कम हजार जप करने पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र जाप के बाद अष्टगंध से हवन करना चाहिए।

हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र


*21. विष उतारने के लिए-*

 ऊँ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पंचमुखहनुमते मं मं मं मं मं सकलविषहराय स्वाहा।
 यह मंत्र दीपावली के दिन अर्धरात्रि में दीपक जलाकर हनुमानजी को साक्षी करके 10 हजार जप लेने से सिद्ध हो जाता है। पुनः बिच्छू, बर्रै आदि बिषधारी जीवों द्वारा काटने पर इस मंत्र को उच्च स्वर से उच्चारण करते हुए उस अंग का स्पर्श करें जहां जीव ने काटा है। कई बार ऐसा करने पर विष उतर जाता है।
हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र

*22. शत्रु संकट निवारणके लिए-*

 ऊँ पूर्वकपिमुखाय पंचमुखहनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रुसंहरणाय स्वाहा। 
इस मंत्र के सिद्ध कर लेने पर शत्रु भय दूर हो जाता है। यह केवल 15 हजार मंत्र जप से सिद्ध हो जाता है।


*23. महामारी, अमंगल, ग्रह-दोष एवं भूत-प्रेतादि नाश के लिए-* 

ऊँ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रं ह्रौं ह्रः ऊँ नमो भगवते महाबलाय-पराक्रमाय भूतप्रेतपिशाचीब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिनीयक्षिणी पूतनामा-रीमहामारीराक्षसभैरववेतालग्रहराक्षसादिकान् क्षणेन हन हन भंजन भंजन मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामाहेश्वररुद्रावतार ऊँ ह्रं फट् स्वाहा।
 ऊँ नमो भगवते हनुमदाख्याय रुद्राय सर्वदुष्टजनमुखस्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा। ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रं ठं ठं ठं फट् स्वाहा।
 यह मंत्र मंगलवार को दिन भर व्रत रखने के बाद अर्धरात्रि में हनुमानजी के मंदिर में सात हजार जप करने से सिद्ध हो जाता है।






हनुमान जी के सर्व कार्य सिद्धि मंत्र


Tuesday, 22 November 2016

भारतीय काल गणना


konark kal chakra भारतीय काल गणना

1. अमूर्त काल-: 

ऐसा सूक्ष्म समय जिसको न तो देखा जा सकता है और न ही उसकी गणना सामान्य तरीको से की जा सकती है। ऐसे सूक्ष्म समय को इन सामान्य इन्द्रियों से अनुभव भी नहीं किया जा सकता।

2. मूर्त काल -:

 ऐसा समय जिसकी गणना संभव है एवं उसको देखा और अनुभव किया जा सकता है।

लग्न काल लग्न काल, 1 सेकेण्ड के 32 अरबवें भाग के बराबर होगा।

त्रुटी-काल गणना कि मूल इकाई

काल गणना कि मूल इकाई त्रुटी है जो ०.324००००० सेकेण्ड के बराबर होती है अर्थात एक त्रुटी एक सेकेण्ड के तीन करोड़वें भाग के बराबर होती है। त्रुटी से प्राण तक का समय अमूर्त एवं उसके बाद का समय मूर्त कहलाता है.

6० त्रुटी = 1 रेणु

6० रेणु = 1 लव

6० लव = 1 लेषक

6० लेषक = 1 प्राण

6० प्राण = 1 विनाड़ी

6० विनाड़ी = 1 नाड़ी

6० नाड़ी = 1 अहोरात्र (दिन-रात)

7 अहोरात्र =1 सप्ताह

2 सप्ताह = 1 पक्ष

2 पक्ष = 1 माह

2 माह = 1 ऋतु

6 माह = 1 अयन

12 माह = 1 वर्ष

432,००० वर्ष = कलियुग

864,००० वर्ष = द्वापरयुग

1296,००० वर्ष = त्रेतायुग

1728,००० वर्ष = सत्य युग

432०,००० वर्ष = 1 चतुर्युग

71 चतुर्युग = 1 मन्वंतर (खंड प्रलय) (32258,००० वर्ष)

14 मन्वंतर = 1 ब्रह्म दिन (432,००,००,०००)

864,००,००,००० वर्ष = ब्रह्मा का एक अहोरात्र = 1 सृष्टि चक्र




8 अरब 64 करोड़ वर्ष का एक सृष्टि चक्र होता है इसके आगे ब्रह्मा के 36० अहोरात्र ब्रह्मा जी के 1 वर्ष के बराबर होते हैं और उनके 1०० वर्ष पूरे होने पर इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड के महाप्रलय का समय आ जाता है

शुक मुनि के अनुसार काल गणना


शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:-

2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका
3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त
3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात
100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह
3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष
3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास
3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु
5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन
15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्


शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होते हैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा।

शुक मुनि के हिसाब से 1 मुहूर्त में 450 काष्ठा होती है तथा महाभारत की गणना के हिसाब से 1 मुहूर्त में 900 काष्ठा होती हैं। यह गणना की भिन्न पद्धतियों को परिलक्षित करती है।

यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी

कलियुग - 432000 वर्ष
kaal chakra2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष
3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष
4 कलियुग - सतयुग - 1728000 वर्ष

चारों युगों की 1 चतुर्युगी - 4320000
71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर - 306720000
14 मन्वंतर तथा संध्यांश के 15 सतयुग
का एक कल्प यानी - 4320000000 वर्ष

एक कल्प यानी ब्रह्मा का एक दिन, उतनी ही बड़ी उनकी रात इस प्रकार 100 वर्ष तक एक ब्रह्मा की आयु। और जब एक ब्रह्मा मरता है तो भगवान विष्णु का एक निमेष (आंख की पलक झपकने के काल को निमेष कहते हैं) होता है और विष्णु के बाद रुद्र का काल आरम्भ होता है, जो स्वयं कालरूप है और अनंत है, इसीलिए कहा जाता है कि काल अनन्त है।


पक्ष-

पृथ्वी की परिक्रमा में चन्द्रमा का १२ अंश चलना एक तिथि कहलाता है। अमावस्या को चन्द्रमा पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य रहता है। इसे ० (अंश) कहते हैं। यहां से १२ अंश चलकर जब चन्द्रमा सूर्य से १८० अंश अंतर पर आता है, तो उसे पूर्णिमा कहते हैं। इस प्रकार एकम् से पूर्णिमा वाला पक्ष शुक्ल पक्ष कहलाता है तथा एकम् से अमावस्या वाला पक्ष कृष्ण पक्ष कहलाता है।

मास- नक्षत्र 

कालगणना के लिए आकाशस्थ २७ नक्षत्र माने गए 
नक्षत्र तारासंख्या आकृति और पहचान
अश्विनी घोड़ा
भरणी त्रिकोण
कृत्तिका अग्निशिखा
रोहिणी गाड़ी
मृगशिरा हरिणमस्तक वा विडालपद
आर्द्रा उज्वल
पुनर्वसु ५ या ६ धनुष या धर
पुष्य १ वा ३ माणिक्य वर्ण
अश्लेषा कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
मघा हल
पूर्वाफाल्गुनी खट्वाकार  उत्तर दक्षिण
उत्तराफाल्गुनी शय्याकार उत्तर दक्षिण
हस्त हाथ का पंजा
चित्रा मुक्तावत् उज्वल
स्वाती कुंकुं वर्ण
विशाखा ५ व ६ तोरण या माला
अनुराधा सूप या जलधारा
ज्येष्ठा सर्प या कुंडल
मुल ९ या ११ शंख या सिंह की पूँछ
पुर्वाषाढा सूप या हाथी का दाँत
उत्तरषाढा सूप
श्रवण बाण या त्रिशूल
धनिष्ठा मर्दल बाजा
शतभिषा १०० मंडलाकार
पूर्वभाद्रपद भारवत् या घंटाकार
उत्तरभाद्रपद दो मस्तक
रेवती ३२ मछली या मृदंग


२७ नक्षत्रों में प्रत्येक के चार पाद किए गए। इस प्रकार कुल १०८ पाद हुए। इनमें से नौ पाद की आकृति के अनुसार १२ राशियों के नाम रखे गए, जो निम्नानुसार हैं-

(१) मेष (२) वृष (३) मिथुन (४) कर्क (५) सिंह (६) कन्या (७) तुला (८) वृश्चिक (९) धनु (१०) मकर (११) कुंभ (१२) मीन। पृथ्वी पर इन राशियों की रेखा निश्चित की गई, जिसे क्रांति कहते है। ये क्रांतियां विषुव वृत्त रेखा से २४ उत्तर में तथा २४ दक्षिण में मानी जाती हैं। इस प्रकार सूर्य अपने परिभ्रमण में जिस राशि चक्र में आता है, उस क्रांति के नाम पर सौर मास है। यह साधारणत: वृद्धि तथा क्षय से रहित है।

चान्द्र मास- 

जो नक्षत्र मास भर सायंकाल से प्रात: काल तक दिखाई दे तथा जिसमें चन्द्रमा पूर्णता प्राप्त करे, उस नक्षत्र के नाम पर चान्द्र मासों के नाम पड़े हैं- (१) चित्रा (२) विशाखा (३) ज्येष्ठा (४) अषाढ़ा (५) श्रवण (६) भाद्रपद (७) अश्विनी (८) कृत्तिका (९) मृगशिरा (१०) पुष्य (११) मघा (१२) फाल्गुनी। अत: इसी आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन-ये चन्द्र मासों के नाम पड़े।

उत्तरायण और दक्षिणायन-पृथ्वी अपनी कक्षा पर २३ ह अंश उत्तर पश्चिमी में झुकी हुई है। अत: भूमध्य रेखा से २३ ह अंश उत्तर व दक्षिण में सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। सूर्य किरणों का लम्बवत् पड़ना संक्रान्ति कहलाता है। इसमें २३ ह अंश उत्तर को कर्क रेखा कहा जाता है तथा दक्षिण को मकर रेखा कहा जाता है। भूमध्य रेखा को ०० अथवा विषुव वृत्त रेखा कहते हैं। इसमें कर्क संक्रान्ति को उत्तरायण एवं मकर संक्रान्ति को दक्षिणायन कहते हैं।

वर्षमान- पृथ्वी सूर्य के आस-पास लगभग एक लाख कि.मी. प्रति घंटे की गति से १६६०००००० कि.मी. लम्बे पथ का ३६५ ह दिन में एक चक्र पूरा करती है। इस काल को ही वर्ष माना गया।





दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया उसके 1 ) सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट भी बढ़ाया गया चूंकि ये दोनो राजा थे इस लिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गये।
आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान है जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेण्डर का नौवा महीना सितम्बर कहते है, दसवा महीना अक्टूबर कहते है, इग्यारहवा महीना नवम्बर और बारहवा महीना दिसम्बर कहते है। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमूच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवा भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।
सन् 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नव वर्ष घोषित किया गया। जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु 12 हजार वर्ष है। जबकि बाइविल केवल 2) हजार वर्ष पुराना मानता है। चीनी कैलेण्डर 1 ) करोड़ वर्ष पुराना मानता है। जबकि खताईमत के अनुसार इस धरती की आयु 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार तीन सौ 11 वर्षो की है। चालडियन कैलेण्डर धरती को दो करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है। फीनीसयन इसे मात्र 30 हजार वर्ष की बताते है। सीसरो के अनुसार यह 4 लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है। सूर्य सिध्दान्त और सिध्दान्त शिरोमाणि आदि ग्रन्थों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है।
संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है। एक जनवरी को नव वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते है क्योंकि भारत में जब 31 दिसम्बर की रात को 12 बजता है तो ब्रीटेन में सायं काल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकता। और जब उनका एक जनवरी का सूर्योदय होता है, तो यहां के Happy New Year वालों का नशा उतर चुका रहता है। सन सनाती हुई ठण्डी हवायें कितना भी सूरा डालने पर शरीर को गरम नहीं कर पाती है। ऐसे में सवेरे सवेरे नहा धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यन्त दुस्कर रहता है। वही पर भारतीय नव वर्ष में वातावरण अत्यन्त मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गन्धर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी देव व्यरष्टि से समष्टि तक सब प्रसन्न हो कर उस परम् शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते है।

लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था , खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं . किसी भी बिशेष दिन , त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् ( पंडित ) के पास जाना पड़ता था . अलग अलग देशों के सम्राट और खगोल शास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे .

इसके प्रचलन में आने के 57 बर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर ( ईस्वी सन ) विकसित हुआ . लेकिन उस में कुछ भी नया खोजने के बजाये , भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था . प्रथ्वी द्वरा 365 / 366 में होने बाली सूर्य की परिक्रमा को बर्ष और इस अबधि में चंद्रमा द्वारा प्रथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए . पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था

1. - एकाम्बर ( 31 ) , 2. - दुयीआम्बर (30) , 3. - तिरियाम्बर (31) , 4. - चौथाम्बर (30) , 5.- पंचाम्बर (31) , 6.- षष्ठम्बर (30) , 7. - सेप्तम्बर (31) , 8.- ओक्टाम्बर (30) , 9.- नबम्बर (31) , 10.- दिसंबर ( 30 ) , 11.- ग्याराम्बर (31) , 12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया . ( सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात , अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ , नबम्बर में नव अर्थात नौ , दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है.

लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त ( षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर - जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया . इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए . फिर बर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया . नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे . जनवरी (31) , फरबरी (30 / 29 ), मार्च ( 31 ) , अप्रैल (30) , मई (31) , जून (30) , जुलाई (31) , अगस्त (30) , सेप्तम्बर (31) , अक्तूबर (30) , नबम्बर (31) , दिसंबर ( 30) , माना गया .

फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि - उसके नाम बाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि - उसके नाम बाला महीना 31 दिन का होना चाहिए . राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30) , अक्तूबर (31) , नबम्बर (30) , दिसंबर ( 31) का कर दिया . एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके ( 28/29 ) कर दिया .

मेरा आप सभी हिन्दुस्थानियों से निवेदन है कि - नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये , पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले नव बर्ष प्रतिपदा पर , समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नवबर्ष का स्वागत करें ....


हिंदू नव वर्ष: हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 23 मार्च) से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत भी कहते हैं।
ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल का आरंभ भी होता है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।

इस्लामी नव वर्ष: इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में
इस्तेमाल होता है बल्कि दुनियाभर के मुसलमान भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं।

ईसाई नव वर्ष: ईसाई धर्मावलंबी 1 जनवरी को नव वर्ष मनाते हंै। करीब 4000 वर्ष पहले बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी । तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।

सिंधी नव वर्ष: सिंधी नव वर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरु होता है, जो चैत्र शुक्ल दिवतीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे।
सिक्ख नव वर्ष: पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।
जैन नव वर्ष: ज़ैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।
पारसी नव वर्ष: पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।
हिब्रू नव वर्ष: हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे । इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है । यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है।

भारतीय कैलेंडर
भारतीय कैलेंडर सूर्य एवं चंद्रमा की गति के आधार पर चलता है और यह शक संवत से आरंभ होता है जो कि सन ७९ के बराबर है। इसका प्रयोग धार्मिक तथा अन्य त्योहारों की तिथि निर्धारित करने के लिए किया जाता है। किन्तु आधिकारिक रूप से ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रयोग होता है।
क्र० माह दिन ग्रेगोरियन दिनांक
१ चैत्र ३० २२ मार्च
२ वैशाख ३१ २१ अप्रैल
३ ज्येष्ठ ३१ २२ मई
४ आषाढ़ ३१ २२ जून
५ श्रावण ३१ २३ जुलाई
clock gif६ भ्राद्रपद ३१ २३ अगस्त
७ अश्विन ३० २३ सितम्बर
८ कार्तिक ३० २३ अक्टूबर
९ अग्रहायण ३० २२ नवम्बर
१० पूस ३० २२ दिसम्बर
११ माघ ३० २१ जनवरी
१२ फाल्गुन ३० २० फरवरी



c का इतिहास

भारतवर्ष में ग्रहीय गतियों का सूक्ष्म अध्ययन करने की परम्परा रही है तथा कालगणना पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य की गति के आधार पर होती रही तथा चंद्र और सूर्य गति के अंतर को पाटने की भी व्यवस्था अधिक मास आदि द्वारा होती रही है। संक्षेप में काल की विभिन्न इकाइयां एवं उनके कारण निम्न प्रकार से बताये गये-

दिन अथवा वार- सात दिन- पृथ्वी अपनी धुरी पर १६०० कि.मी. प्रति घंटा की गति से घूमती है, इस चक्र को पूरा करने में उसे २४ घंटे का समय लगता है। इसमें १२ घंटे पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने रहता है उसे अह: तथा जो पीछे रहता है उसे रात्र कहा गया। इस प्रकार १२ घंटे पृथ्वी का पूर्वार्द्ध तथा १२ घंटे उत्तरार्द्ध सूर्य के सामने रहता है। इस प्रकार १ अहोरात्र में २४ होरा होते हैं। ऐसा लगता है कि अंग्रेजी भाषा का ण्दृद्वद्ध शब्द ही होरा का अपभ्रंश रूप है। सावन दिन को भू दिन भी कहा गया।

सौर दिन-पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 1 लाख कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से कर रही है। पृथ्वी का 10 चलन सौर दिन कहलाता है।

चान्द्र दिन या तिथि- चान्द्र दिन को तिथि कहते हैं। जैसे एकम्, चतुर्थी, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आदि। पृथ्वी की परिक्रमा करते समय चन्द्र का 12 अंश तक चलन एक तिथि कहलाता है।

सप्ताह- सारे विश्व में सप्ताह के दिन व क्रम भारत वर्ष में खोजे गए क्रम के अनुसार ही हैं। भारत में पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया, यथा- शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुद्ध और चन्द्रमा। इनमें चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर। इसमें एक-एक ग्रह दिन के 24 घंटों या होरा में एक-एक घंटे का अधिपति रहता है। अत: क्रम से सातों ग्रह एक-एक घंटे अधिपति, यह चक्र चलता रहता है और 24 घंटे पूरे होने पर अगले दिन के पहले घंटे का जो अधिपति ग्रह होगा, उसके नाम पर दिन का नाम रखा गया। सूर्य से सृष्टि हुई, अत: प्रथम दिन रविवार मानकर ऊपर क्रम से शेष वारों का नाम रखा गया।

निम्न तालिका से सातों दिनों के क्रम को हम सहज समझ सकते हैं-
चन्द्र बुध शुक्र सूर्य मंगल बृह. शनि
४ ३ २ रवि १ - - -
११ १० ९ ८ ७ ६ ५
१८ १७ १६ १५ १४ १३ १२
सोम १ २४ २३ २२ २१ २० १९
८ ७ ६ ५ ४ ३ २
१५ १४ १३ १२ ११ १० ९
२२ २१ २० १९ १८ १७ १६
५ ४ ३ २ मंगल १ २४ २३
१२ ११ १० ९ ८ ७ ६
१९ १८ १७ १६ १५ १४ १३
२ बुध १ २४ २३ २२ २१ २०
९ ८ ७ ६ ५ ४ ३
१६ १५ १४ १३ १२ ११ १०
२३ २२ २१ २० १९ १८ १७
६ ५ ४ ३ २ बृह.१ २४
१३ १२ ११ १० ९ ८ ७
२० १९ १८ १७ १६ १५ १४
३ २ शुक्र १ २४ २३ २२ २१
१० ९ ८ ७ ६ ५ ४
१७ १६ १५ १४ १३ १२ ११
२४ २३ २२ २१ २० १९ १८
शनि १
पक्ष-पृथ्वी की परिक्रमा में चन्द्रमा का १२ अंश चलना एक तिथि कहलाता है। अमावस्या को चन्द्रमा पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य रहता है। इसे ० (अंश) कहते हैं। यहां से १२ अंश चलकर जब चन्द्रमा सूर्य से १८० अंश अंतर पर आता है, तो उसे पूर्णिमा कहते हैं। इस प्रकार एकम् से पूर्णिमा वाला पक्ष शुक्ल पक्ष कहलाता है तथा एकम् से अमावस्या वाला पक्ष कृष्ण पक्ष कहलाता है।

मास- कालगणना के लिए आकाशस्थ २७ नक्षत्र माने गए (१) अश्विनी (२) भरणी (३) कृत्तिका (४) रोहिणी (५) मृगशिरा (६) आर्द्रा (७) पुनर्वसु (८) पुष्य (९) आश्लेषा (१०) मघा (११) पूर्व फाल्गुन (१२) उत्तर फाल्गुन (१३) हस्त (१४) चित्रा (१५) स्वाति (१६) विशाखा (१७) अनुराधा (१८) ज्येष्ठा (१९) मूल (२०) पूर्वाषाढ़ (२१) उत्तराषाढ़ (२२) श्रवणा (२३) धनिष्ठा (२४) शतभिषाक (२५) पूर्व भाद्रपद (२६) उत्तर भाद्रपद (२७) रेवती।

२७ नक्षत्रों में प्रत्येक के चार पाद किए गए। इस प्रकार कुल १०८ पाद हुए। इनमें से नौ पाद की आकृति के अनुसार १२ राशियों के नाम रखे गए, जो निम्नानुसार हैं-

(१) मेष (२) वृष (३) मिथुन (४) कर्क (५) सिंह (६) कन्या (७) तुला (८) वृश्चिक (९) धनु (१०) मकर (११) कुंभ (१२) मीन। पृथ्वी पर इन राशियों की रेखा निश्चित की गई, जिसे क्रांति कहते है। ये क्रांतियां विषुव वृत्त रेखा से २४ उत्तर में तथा २४ दक्षिण में मानी जाती हैं। इस प्रकार सूर्य अपने परिभ्रमण में जिस राशि चक्र में आता है, उस क्रांति के नाम पर सौर मास है। यह साधारणत: वृद्धि तथा क्षय से रहित है।

चान्द्र मास- जो नक्षत्र मास भर सायंकाल से प्रात: काल तक दिखाई दे तथा जिसमें चन्द्रमा पूर्णता प्राप्त करे, उस नक्षत्र के नाम पर चान्द्र मासों के नाम पड़े हैं- (१) चित्रा (२) विशाखा (३) ज्येष्ठा (४) अषाढ़ा (५) श्रवण (६) भाद्रपद (७) अश्विनी (८) कृत्तिका (९) मृगशिरा (१०) पुष्य (११) मघा (१२) फाल्गुनी। अत: इसी आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन-ये चन्द्र मासों के नाम पड़े।

उत्तरायण और दक्षिणायन-पृथ्वी अपनी कक्षा पर २३ ह अंश उत्तर पश्चिमी में झुकी हुई है। अत: भूमध्य रेखा से २३ ह अंश उत्तर व दक्षिण में सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। सूर्य किरणों का लम्बवत् पड़ना संक्रान्ति कहलाता है। इसमें २३ ह अंश उत्तर को कर्क रेखा कहा जाता है तथा दक्षिण को मकर रेखा कहा जाता है। भूमध्य रेखा को ०० अथवा विषुव वृत्त रेखा कहते हैं। इसमें कर्क संक्रान्ति को उत्तरायण एवं मकर संक्रान्ति को दक्षिणायन कहते हैं।

वर्षमान- पृथ्वी सूर्य के आस-पास लगभग एक लाख कि.मी. प्रति घंटे की गति से १६६०००००० कि.मी. लम्बे पथ का ३६५ ह दिन में एक चक्र पूरा करती है। इस काल को ही वर्ष माना गया।
(क्रमश:)
काल गणना
इस काल का सूक्ष्मतम अंश परमाणु है तथा महत्तम अंश ब्राहृ आयु है। इसको विस्तार से बताते हुए शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:-

2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका
3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त
3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात
100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह
3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष
3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास
3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु
5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन
15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्ष

शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होते हैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा।

महाभारत के मोक्षपर्व में अ. 231 में कालगणना - निम्न है:-
15 निमेष - 1 काष्ठा
30 काष्ठा -1 कला
30 कला- 1 मुहूत्र्त
30 मुहूत्र्त- 1 दिन रात

दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है। शुक मुनि के हिसाब से 1 मुहूर्त में 450 काष्ठा होती है तथा महाभारत की गणना के हिसाब से 1 मुहूर्त में 900 काष्ठा होती हैं। यह गणना की भिन्न पद्धतियों को परिलक्षित करती है।

यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी

कलियुग - 432000 वर्ष
2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष
3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष
4 कलियुग - सतयुग - 1728000 वर्ष

चारों युगों की 1 चतुर्युगी - 4320000
71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर - 306720000
14 मन्वंतर तथा संध्यांश के 15 सतयुग
का एक कल्प यानी - 4320000000 वर्ष

एक कल्प यानी ब्रह्मा का एक दिन, उतनी ही बड़ी उनकी रात इस प्रकार 100 वर्ष तक एक ब्रह्मा की आयु। और जब एक ब्रह्मा मरता है तो भगवान विष्णु का एक निमेष (आंख की पलक झपकने के काल को निमेष कहते हैं) होता है और विष्णु के बाद रुद्र का काल आरम्भ होता है, जो स्वयं कालरूप है और अनंत है, इसीलिए कहा जाता है कि काल अनन्त है।




मन्वन्तर मान-

 सूर्य मण्डल के परमेष्ठी मंडल (आकाश गंगा) के केन्द्र का चक्र पूरा होने पर उसे मन्वन्तर काल कहा गया। इसका माप है 30,67,20,000 (तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष। एक से दूसरे मन्वन्तर के बीच 1 संध्यांश सतयुग के बराबर होता है। अत: संध्यांश सहित मन्वन्तर का माप हुआ 30 करोड़ 84 लाख 48 हजार वर्ष। आधुनिक मान के अनुसार सूर्य 25 से 27 करोड़ वर्ष में आकाश गंगा के केन्द्र का चक्र पूरा करता है।

कल्प- 

परमेष्ठी मंडल स्वायम्भू मंडल का परिभ्रमण कर रहा है। यानी आकाश गंगा अपने से ऊपर वाली आकाश गंगा का चक्कर लगा रही है। इस काल को कल्प कहा गया। यानी इसका माप है 4 अरब 32 करोड़ वर्ष (4,32,00,00,000)। इसे ब्रह्मा का एक दिन कहा गया। जितना बड़ा दिन, उतनी बड़ी रात, अत: ब्रह्मा का अहोरात्र यानी 864 करोड़ वर्ष हुआ।

ब्रह्मा का वर्ष यानी 31 खरब 10 अरब 40 करोड़ वर्ष
ब्रह्मा की 100 वर्ष की आयु अथवा ब्रह्माण्ड की आयु- 31 नील 10 अरब 40 अरब वर्ष (31,10,40,000000000 वर्ष)


संकल्प मंत्र ..

ॐ अस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राहृणां द्वितीये परार्धे- अर्थात् महाविष्णु द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में वर्तमान ब्रह्मा की आयु का द्वितीय परार्ध-वर्तमान ब्रह्मा की आयु के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं। श्वेत वाराह कल्पे-कल्प याने ब्रह्मा के 51वें वर्ष का पहला दिन है।

वैवस्वतमन्वंतरे- ब्रह्मा के दिन में 14 मन्वंतर होते हैं उसमें सातवां मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है।

अष्टाविंशतितमे कलियुगे- एक मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होती हैं, उनमें से 28वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है।

कलियुगे प्रथमचरणे- कलियुग का प्रारंभिक समय है।

कलिसंवते या युगाब्दे- कलिसंवत् या युगाब्द वर्तमान में 5104 चल रहा है।

जम्बु द्वीपे, ब्रह्मावर्त देशे, भारत खंडे- देश प्रदेश का नाम
अमुक स्थाने - कार्य का स्थान
अमुक संवत्सरे - संवत्सर का नाम
अमुक अयने - उत्तरायन/दक्षिणायन
अमुक ऋतौ - वसंत आदि छह ऋतु हैं
अमुक मासे - चैत्र आदि 12 मास हैं
अमुक पक्षे - पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष)
अमुक तिथौ - तिथि का नाम
अमुक वासरे - दिन का नाम
अमुक समये - दिन में कौन सा समय
अमुक - व्यक्ति - अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है।

Saturday, 19 November 2016

शाबर सिद्धियां


siddhi

शाबर सिद्धियां ,Siddhi 

सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना
 व सफलता की अनुभूति मिलना. सिद्धि को प्राप्त करने का मार्ग एक कठिन मार्ग हो ओर जो इन
 सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की पूर्णता को पा लेता है. 
असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है.
 चमत्कारिक साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे -
 दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति
 प्राप्त कर लेना इत्यादि. 'सिद्धि' इसी अर्थ में प्रयुक्त होती है.


शास्त्रों में अनेक सिद्धियों की चर्चा की गई है और इन सिद्धियों को यदि नियमित और अनुशासनबद्ध रहकर किया जाए तो अनेक प्रकार की परा और अपरा सिद्धियाँ प्राप्त कि जा सकती है. सिद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा. यह सिद्धियां इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं. सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियां कहलाती है . मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं. इन सिद्धियों को पाने के उपरांत साधक के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.


देवी दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री मुख्य नो सिद्धियों को प्रदान करने
सिद्धिदात्री : मां दुर्गा का नौवां रूप ... का सामर्थ्य रखती है ,भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह
 तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं |हनुमान चालीसा की एक चौपाई 
 जिसमे तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तो को 
आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते
 हैं ऐसा सीतामाता ने उन्हे वरदान दिया |


सिद्धियां क्या हैं व इनसे क्या हो सकता है इन सभी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्राप्त होता है जो इस प्रकार है:- अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:।।


यह आठ मुख्य सिद्धियाँ इस प्रकार हैं:-

अणिमा सिद्धि |                                  



अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता ही अणिमा है. 
ast siddhi dharak hanuman jiयह सिद्धि यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त हो कर व्यक्ति 
सूक्ष्म रूप धर कर एक प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो
 जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु रुप 
में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति
 से सम्पन्न हो साधक वीर व बलवान हो जाता है. अणिमा
 की सिद्धि से सम्पन्न योगी अपनी शक्ति द्वारा अपार बल पाता है |.इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला


महिमा सिद्धि |



अपने को बड़ा एवं विशाल बना लेने की क्षमता को महिमा कहा जाता है. यह आकार को विस्तार देती है विशालकाय स्वरुप को जन्म देने में सहायक है. इस सिद्धि से सम्पन्न होकर साधक प्रकृति को विस्तारित करने में सक्षम होता है. जिस प्रकार केवल ईश्वर ही अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं उसी प्रकार साधक भी इसे पाकर उन्हें जैसी शक्ति भी पाता है.

जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।

गरिमा सिद्धि |



hanuman bheem milapइस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है. यह सिद्धि साधक को अनुभव कराती है कि उसका वजन या भार उसके अनुसार बहुत अधिक बढ़ सकता है जिसके द्वारा वह किसी के हटाए या हिलाए जाने पर भी नहीं हिल सकता .| गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे।



लघिमा सिद्धि |

लघिमा सिद्धि |
स्वयं को हल्का बना लेने की क्षमता ही लघिमा सिद्धि होती है. लघिमा सिद्धि में साधक स्वयं को अत्यंत हल्का अनुभव करता है. इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है.| जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।
प्राप्ति सिद्धि |


कुछ भी निर्माण कर लेने की क्षमता इस सिद्धि के बल पर वह असंभव होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है. जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी प्राप्त हो सकता है या अमृत की चाह को भी पूरा कर पाने में वह सक्षम हो जाता है केवल इसी सिद्धि द्वारा ही वह असंभव को भी संभव कर सकता है.| रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।


प्राकाम्य सिद्धि

प्राकाम्य सिद्धि |

कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता प्राकाम्य सिद्धि की प्राप्ति है. इसके सिद्ध हो जाने पर मन के विचार आपके अनुरुप परिवर्तित होने लगते हैं. इस सिद्धि में साधक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति का अनुभव करता है. इस सिद्धि को पाने के बाद मनुष्य जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसे पाने में कामयाब रहता है. व्यक्ति चाहे तो आसमान में उड़ सकता है और यदि चाहे तो पानी पर चल सकता है. | इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे।

ईशिता सिद्धि |



हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना ही इस सिद्धि का अर्थ है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक समस्त प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है. सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आदेश के अनुसार किसी पर भी अधिकार जमाय अजा सकता है. वह चाहे राज्यों से लेकर साम्राज्य ही क्यों न हो.


इस सिद्धि को पाने पर साधक ईश रुप में परिवर्तित हो जाता है.ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा।

वशिता सिद्धि |



जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता को वशिता या वशिकरण कही जाती है. इस सिद्धि के द्वारा जड़, चेतन, जीव-जन्तु, पदार्थ- प्रकृति, सभी को स्वयं के वश में किया जा सकता है. इस सिद्धि से संपन्न होने पर किसी भी प्राणी को अपने वश में किया जा सकता है.







शाबर सिद्धियां


नाथ पंथ में मशहूर सिद्धियों का वर्णन करना भगवान शिव के महात्मय को कहने के बराबर है ,

मतलब वे है तो बहुत ज्यादा पर उनमे से प्रमुख का ही वर्णन इस प्रकार ह




धूणा सिद्धि


धूणा सिद्धिइस तरह की सिद्धि में पांचं 5 ,बत्तीस ३२, इकतालीस ४१ ,या एक सौ आठ १०८ धूने जागृत करके उनमे तपस्या की जाती है |

जितने धुनें जागृत रखे जाते है ,उन के हिसाब से साधक को मान सम्मान मिलता है |

और सिद्धिया प्राप्त होती है ,साधना की समाप्ति पर भंडारे का आयोजन किया जाता है |

उसमे आने वाले साधु संतो को मर्यादा के अनुसार कम्बल, वस्त्र, चांदी का सिक्का ,धन सम्पदा का दान किया जाता है |

जल सिद्धि



जल सिद्धिजब कोई साधु बहते हुए जल में घुटने तक ,कटिबंध तक ,नाभि तक ,छाती तक ,या गर्दन तक जल में खड़े होकर सुबह शाम एक निश्चित समय तक मंतर जाप करके सिद्धि प्राप्त करता है उसे जल सिद्धि की संज्ञा दी गयी है | जैसे सुबह और शाम चार चार ४-४ घंटे तपस्या की जाती है | मुख्यतः २१ इक्कीस दिन की तपस्या की जाती है ,परंतु कोई कोई हठयोगी इसे सालों साल करता ह जैसे १२ बारह साल के लिए या पांच ५ साल के लिए |




पवन सिद्धि

ये सिद्धि मनुष्य की सामर्थ्यता पर निर्भर करती है ,इसमें मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है ,जैसे पानी पर चलना ,उड़ना ,कुछ समय के लिए शरीर त्याग देना इत्यादि |

पवन सिद्धिइस प्रक्रिया में श्री भगवत देवी महापुराण में वर्णित योगाभ्यास का प्रयोग करके ,पहले अपने शरीर पर नियंत्रण रखता है ,साधना की शुरुआत में दोनों समय के खाने में थोड़ी धोड़ी कटौती की जाती है

फिर एक समय ही भोजन खाया जाता है ,फिर कंद मूलो पर गुजारा किया जाता है ,इसके बाद भोजन बिलकुल बंद कर दिया जाता है | इसमें साधक अपने पंचभूतो पर विजय पाने के लिए ही ये साधना करता है | प्राप्त जानकारी के अनुसार इस साधना को सिर्फ गोरखनाथ और आदिनाथ जी ने किया था |




सूर्य चंद्र सिद्धि


सूर्य चंद्र सिद्धिचंद्र सिद्धि की साधना के दौरान साधक चंद्रोदय से चन्द्रास्त तक साधना में लीन रहते है ,इस श्रेणी के साधक मुख्यतः लंगोट ही धारण करते है | ये साधक भोजन भी चाँद को अर्घ्य देकर ही ग्रहण करते है | इस साधना से साधक के मन में धैर्य शीतलता का वास होता है ,अन्य शक्तिया भी प्राप्त होती है | इसी तरह सूर्य साधक भी होते है | लेकिन उनमे क्रोध, तेज ,तामसिकता का गौण विद्यमान होता है |सूर्य साधना का वर्णन सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में मिलता ह |




पृथ्वी तेज सिद्धि

पृथ्वी तेज सिद्धि
कुछ योगी अवधूत जमीन के नीचे गड्ढा खोदकर उसे ऊपर से छोटे कमरे जैसा रूप देकर उसमे साधना सिद्धि करते है | कुछ इसे समय निर्धारित करके करते है जैसे २१ इक्कीस दिन या ४१ इकतालीस दिन के लिए |





झूला खड़ी साधना

झूले खड़ी की साधना

झूले की साधना में साधक निर्धारित दिनों के लिए झूले पर ही रहता है | इस साधना के दौरान पैर व् टाँगे सूज कर बड़ी बड़ी हो जाती है |


कड़ी साधना के दौरान साधक कभी भी नही बैठता | यह २१ इक्कीस ,४१ इकतालीस ,१०८ एक सौ आठ ,६ छह महीने ,एक १ साल या इससे ज्यादा समय की भी हो सकती है |

Monday, 14 November 2016

वशीकरण शाबर मंत्र

 वशीकरण शाबर मंत्र


बारा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौं कालिका।
 चण्डी म राखौं मोहिनी, भुजा म राखौं जोहनी।
 आगू म राखौं सिलेमान, पाछे म राखौं जमादार। 
जाँघे म राखौं लोहा के झार, पिण्डरी म राखौं सोखन वीर।
 उल्टन काया, पुल्टन वीर, हाँक देत हनुमन्ता छुटे। 
राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। 
कीर करे बीट बिरा करे, मोहिनी-जोहिनी सातों बहिनी।
 मोह देबे जोह देबे, चलत म परिहारिन मोहों।
 मोहों बन के हाथी, बत्तीस मन्दिर के दरबार मोहों।
 हाँक परे भिरहा मोहिनी के जाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहेब।

विधि- ग्रहण दीपावली होली जन्माष्टमी जैसे शुभ  समय में १०८ बार जपने से विशेष फलदायी होता है। नारियल, नींबू, अगर-बत्ती, सिन्दूर और गुड़ का भोग लगाकर १०८ बार मन्त्र जपे।
उपयोग का समय  उक्त मन्त्र को पढ़ते हुए इस प्रकार जाँए कि मन्त्र की समाप्ति ठीक इच्छित व्यक्ति के सामने हो।


हनुमान वशीकरण मंत्र

ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी।
 जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। 
‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए,
 तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।

Image result for vashikaran mantra

विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।अमुक की जगह उस व्यक्ति का नाम ले जिस पर वशीकरण करना ह 



भैरव वशीकरण मन्त्र

“ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा”

विधिः- सर्व-प्रथम किसी रविवार को गुग्गुल, धूप, दीपक सहित उपर्युक्त मन्त्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करे। फिर आवश्यकतानुसार इस मन्त्र का १०८ बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित लौंग को, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए।

 नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर।
 गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी,
 गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। 
जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। 
काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण। 
फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा

विधिः- २१,००० जप। आवश्यकता पड़ने पर २१ बार गुड़ को अभिमन्त्रित कर साध्य को खिलाए।


“ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करे। फिर मन्त्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, उसके घर में फेंक देवे। या घर के पिछवाड़े गाड़ दे। यही क्रिया ‘छितवन’ या ‘फुरहठ’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।अमुक की जगह उस व्यक्ति का नाम ले जिस पर वशीकरण करना ह


नमक वशीकरण 


ॐ  भगवती भग भाग दियिनी देवदत्ती मम वश्यम कुरु कुरु स्वाहा


किसी भी गुरूवार को शांत  मन से नमक लेकर ७  सात बार अभिमंत्रित करे 
फिर इच्छीत स्त्री के खाने या पीने की वास्तु में मिला कर दे दें| 
यह प्रयोग केवल स्त्री पर ही उपयोगी है |



मिटटी द्वारा वशीकरण

मन्त्र
काला कलुआ चौंसठ वीर
ताल भागी तोर
जहाँ को भेज वहीँ को जाये
मांस मज्जा को शब्द बन जाये
अपना  मारा दिखावे
चलत बाण मारू
उलट मूठ मारू
मार मार कलुआ तेरी आस चार
चौमुखा दीवा
मार बड़ी की छाती
इतना काम मेरा न करे तो तेरी माता का ढूध हराम |

विधि :-
इस मंत्र को सिद्ध पुरुष के सानिध्य में ही करे , जिस स्त्री को वशीभूत करना ह
उसकेबांए पाँव की मिटटी लेकर ,इस मंतर से सात बार पढ़कर उसके सर में डाल दें |
वह आपके वश में हो जाएगी |


दृष्टि वशीकरण मंत्र

एम् भाग भुज भगनी भगोदरि भगमाले यौनि भगनिपतिनी सर्वभग संकरी 
भगरूपे नित्य कलेम भगस्वरूपे सर्व भगानी में वशमानय वरदेरेते सुरेते भग
 कलिम्ने क्लिम न द्रव क्लेदय द्रावय अमोघे भग विधे क्षुभ क्षोभय सर्व 
स्तवामगेशवरी  एम् लकं  जं ब्लूम भैं मौ बलूं हे हे क्लिने सर्वाणि भगानी तस्मै स्वाहा |

सिद्ध पुरुष यदि इस मंतर का जाप करते हुए किसी स्त्री से  नजर  मिलाये तो वह वशीभूत हो जाती है




मन्त्र

ॐ नम: उर्वशी सुपारी काम निगारी !
शुची राजा प्रजा रहे सब पियारी !
अमुक को मन्त्र पढ़ हृदय लगाऊं !
उठता बैठता निज दासी बनाऊं !
मरे पर उसकी जान जाए मशान !
वश न होवे तो यति हनुमंत की आन !


विधि ..

.
जिसको वश में करना हो उसका नाम अमुक की जगह ले कर ग्रहण में 1000 जाप करे . अथवा किसी सिद्ध महूर्त या पर्व पर भी कर सकते हैं ,
जाप करते समय कुछ सुपारियाँ सामने रखें सुगन्धित धुप दीप का प्रयोग करें . पांच लड्डू भी भोग के रूप में हनुमान जी के लिए रखें .जाप के बाद इन लड्डू को किसी एकांत  जगह पर रखदे अब आपकी सामग्री तैयार है.
सुपारियाँ सुखित रखे .अब जिसको आप अपने वश में करना चाहते हो थोड़ी थोड़ी सुपारी उसको खिला देवे .
खिलाने के लिए पहले मन्त्र जाप अवश्य करें . सुपारी को भिगो कर रखे
फिर किसी पत्थर पर घिस लें .इस घसे लेप् को किसी भी वस्तु में मिलाकर खिलाने से शक्तिशाली वशीकरण होगा




चिता कि राख से वशीकरण शाबर मंत्र


ॐ नमो धूलि धूलि।
विकट चांदनी पर मारूँ धूलि।
धूलि लगे, बने दीवानी।
घर तजे।
बाहर तजे।
ठाडा तजे भर्तार दीवानी।
एक सठी बलवान।
तुं नाहरसिंह वीर अमुक को उठाय लाव।
न लाय तो हनुमान वीर कि दुहाई।
मेरी भक्ति।
गुरु कि शक्ति।
फुरे मंत्र ईश्वरोवाचा।




विधि:

 शनिवार को श्मशान में जाकर किसी स्त्री कि चिता कि राख ले आयें। फिर इस मंत्र से १०८ बार अभिमंत्रित करें। अब फूंक मार कर जिस किसी को भी तिलक या सिर पर डालोगे,  शक्तिशाली वशीकरण होगा

 मंत्र



“ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर।

गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी,

गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश।

जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे।

काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण।

फुरे मंत्र ईश्वरोवाचा।

विधिः- 
जिसको वश में करना हो उसका नाम ले कर ग्रहण में 11000 जाप करे आवश्यकता पड़ने पर २१ बार गुड़ को अभिमन्त्रित कर, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए।

Thursday, 10 November 2016

भगवान शंकर की पूजा में चढ़ाये जा सकने वाली सामग्री का विवरण



भगवान शंकर की पूजा के सन्दर्भ में वेदों में वर्णित है


तप, शील, सर्वगुण संपन्न वेद में निष्णात किसी ब्राह्मण को सौ सुवर्ण दान करने पर जो फल प्राप्त होता है, वह शिव पर सौ फूल चढ़ा देने से प्राप्त हो जाता है। जैसे दस सुवर्ण दान का फल एक आक के फूल को चढ़ाने से मिलता है, उसी प्रकार हजार आक के फूलों का फल एक कनेर से और हजार कनेर के बराबर एक बिल्व पत्र से मिलता है। समस्त फूलों में सबसे बढ़कर नीलकमल होता है।


भगवान को ताजे, बिना मुरझाए तथा बिना कीड़ों के खाए हुए फूल डंठलों सहित चढाने चाहिए। फूलों को देव मूर्ति की तरफ करके उन्हें उल्टा अर्नित करे। बेल का पत्ता भी उल्टा अर्पण करे। बेल एवं दूर्वा का अग्रभाग अपनी ओर होना चाहिए। उसे मूर्ति की तरफ न करे।

शिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल  chameliभगवान शंकर की पूजा में चढ़ाये जा सकने वाले फूल


भगवान विष्णु की पूजा में जिस भी फूल का प्रयोग होता है ,उनमे से केतकी या केवड़े को छोड़कर बाकि सभी फूल भगवान शंकर पर चढ़ाये जा सकते है | कमल और कुमुद के पुष्प ग्यारह
शिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल safed kamal से पंद्रह दिन तक भी बासी नहीं होते।

व्यास मुनि जी ने कनेर की कोटि में चमेली , मौलसिरी ,पाटला,
श्वेत कमल ,शमी के फूल और बड़ी भटकटैया ,धतूरे की कोटि में
 नाग चंपा और पूनाग को शिव पूजा में उपयोगी बताया है |

शिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल laal kamalभविष्य पुराण के अनुसार भगवान शंकर पर चढाने योग्य फूलो के नाम


करवीर ,कनेर मौलसिरी, आक धतूरा ,पाढऱ,बड़ी कटेरी ,कुरैया ,कास ,मदार,
अपराजिता ,शमी का फूल ,कुब्जक ,शंख पुष्पी ,चिचिड़ा ,चिचिरी कमल ,चमेली ,नाग चंपा ,चंपा ,खस,तगर ,नाग केशर ,किंकिरात ,,गुमा, शीशम ,जयंती ,बेला,
शिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल dhatura
शिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल neel kamalशिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल nag champaशिवलिंग   पर चढाने  योग्य  फूल naag kesharपलाश ,बेलपत्ता ,कुशुम्भ पुष्प ,नील और लाल कमल |
लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।
अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।
शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।
जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।
हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं,
लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।








भगवान शिव को कौन सा द्रव्य चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है
ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
नपुंसक व्यक्ति अगर घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।
तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।
शिवलिंग पर ईख  का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।
शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा टीबी रोग में आराम मिलता है।



शिवपुराण के लिए अनुसार शिवजी को अर्पित भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकडिय़ों को एक साथ जलाया जाता है। इस दौरान उचित मंत्रोच्चार किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छान लिया जाता है। इस प्रकार तैयार की गई भस्म शिवजी को अर्पित की जाती है।ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार तैयार की गई भस्म को यदि कोई इंसान भी धारण करता है तो वह सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करता है। शिवपुराण के अनुसार ऐसी भस्म धारण करने से व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है, समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। अत: शिवजी को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाना चाहिए।