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Sunday, 27 September 2020

राजा वीर विक्रमादित्य के नवरत्न.

 विक्रमादित्य के नवरत्न...?

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आपने अकबर के नवरत्नों के बारे में तो जरूर सुना होगा। आज हमसे जाने राजा विक्रमादित्य 

के नवरत्न के बारे मे ।


सनातन धर्म मे आज हम आपको विक्रमादित्य के नव रत्नों के बारे में संक्षेप में बता रहे हैं।


 राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन।


 राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।

 

ये हैं नवरत्न –


1–धन्वन्तरि-

नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।


2–क्षपणक-

जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।

इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।

इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।


3–अमरसिंह-

ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।


4–शंकु 

इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।


5–वेतालभट्ट -

विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।


6–घटखर्पर -

जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।


इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।

इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।


7–कालिदास -

ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।


जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।


8–वराहमिहिर -

भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें‘बृहज्जातक‘, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।


9–वररुचि-

कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।

इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-

1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,

2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि 

3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि।

सबके मंगलमय दिन की शुभकामना।

*जय बद्री केदार।*

नौ नाथ चौरासी सिध्द बारह पंथ

 नवनाथ


नवनाथ नाथ सम्प्रदाय के सबसे आदि में नौ मूल नाथ हुए हैं । वैसे नवनाथों के सम्बन्ध में काफी मतभेद है, किन्तु वर्तमान नाथ सम्प्रदाय के 18-20 पंथों में प्रसिद्ध नवनाथ क्रमशः इस प्रकार हैं -


1॰ आदिनाथ - ॐ-कार शिव, ज्योति-रुप

2॰ उदयनाथ - पार्वती, पृथ्वी रुप

3॰ सत्यनाथ - ब्रह्मा, जल रुप

4॰ संतोषनाथ - विष्णु, तेज रुप

5॰ अचलनाथ (अचम्भेनाथ) - शेषनाग, पृथ्वी भार-धारी

6॰ कंथडीनाथ - गणपति, आकाश रुप

7॰ चौरंगीनाथ - चन्द्रमा, वनस्पति रुप

8॰ मत्स्येन्द्रनाथ - माया रुप, करुणामय

9॰ गोरक्षनाथ - अयोनिशंकर त्रिनेत्र, अलक्ष्य रुप





*नाथ संप्रदाय के चौरासी सिद्ध*


*जोधपुर, चीन इत्यादि के चौरासी सिद्धों में भिन्नता है । अस्तु, यहाँ यौगिक साहित्य में प्रसिद्ध नवनाथ के अतिरिक्त 84 सिद्ध नाथ इस प्रकार हैं:---*

1॰ सिद्ध चर्पतनाथ,

2॰ कपिलनाथ,

3॰ गंगानाथ,

4॰ विचारनाथ,

5॰ जालंधरनाथ,

6॰ श्रंगारिपाद,

7॰ लोहिपाद,

8॰ पुण्यपाद,

9॰ कनकाई,

10॰ तुषकाई,

11॰ कृष्णपाद,

12॰ गोविन्द नाथ,

13॰ बालगुंदाई,

14॰ वीरवंकनाथ,

15॰ सारंगनाथ,

16॰ बुद्धनाथ,

17॰ विभाण्डनाथ,

18॰ वनखंडिनाथ,

19॰ मण्डपनाथ,

20॰ भग्नभांडनाथ,

21॰ धूर्मनाथ ।

22॰ गिरिवरनाथ,

23॰ सरस्वतीनाथ,

24॰ प्रभुनाथ,

25॰ पिप्पलनाथ,

26॰ रत्ननाथ,

27॰ संसारनाथ,

28॰ भगवन्त नाथ,

29॰ उपन्तनाथ,

30॰ चन्दननाथ,

31॰ तारानाथ,

32॰ खार्पूनाथ,

33॰ खोचरनाथ,

34॰ छायानाथ,

35॰ शरभनाथ,

36॰ नागार्जुननाथ,

37॰ सिद्ध गोरिया,

38॰ मनोमहेशनाथ,

39॰ श्रवणनाथ,

40॰ बालकनाथ,

41॰ शुद्धनाथ,

42॰ कायानाथ ।

43॰ भावनाथ,

44॰ पाणिनाथ,

45॰ वीरनाथ,

46॰ सवाइनाथ,

47॰ तुक नाथ,

48॰ ब्रह्मनाथ,

49॰ शील नाथ,

50॰ शिव नाथ,

51॰ ज्वालानाथ,

52॰ नागनाथ,

53॰ गम्भीरनाथ,

54॰ सुन्दरनाथ,

55॰ अमृतनाथ,

56॰ चिड़ियानाथ,

57॰ गेलारावल,

58॰ जोगरावल,

59॰ जगमरावल,

60॰ पूर्णमल्लनाथ,

61॰ विमलनाथ,

62॰ मल्लिकानाथ,

63॰ मल्लिनाथ ।

64॰ रामनाथ,

65॰ आम्रनाथ,

66॰ गहिनीनाथ,

67॰ ज्ञाननाथ,

68॰ मुक्तानाथ,

69॰ विरुपाक्षनाथ,

70॰ रेवणनाथ,

71॰ अडबंगनाथ,

72॰ धीरजनाथ,

73॰ घोड़ीचोली,

74॰ पृथ्वीनाथ,

75॰ हंसनाथ,

76॰ गैबीनाथ,

77॰ मंजुनाथ,

78॰ सनकनाथ,

79॰ सनन्दननाथ,

80॰ सनातननाथ,

81॰ सनत्कुमारनाथ,

82॰ नारदनाथ,

83॰ नचिकेता,

84॰ कूर्मनाथ ।

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*नाथ संप्रदाय के बारह पंथ*


*नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी मुख्यतः बारह शाखाओं में विभक्त हैं, जिसे बारह पंथ कहते हैं । इन बारह पंथों के कारण नाथ सम्प्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है । प्रत्येक पंथ का एक-एक विशेष स्थान है, जिसे नाथ लोग अपना पुण्य क्षेत्र मानते हैं । प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है । नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:---*


*1॰ सत्यनाथ पंथ - इनकी संख्या 31 बतलायी गयी है । इसके मूल प्रवर्तक सत्यनाथ (भगवान् ब्रह्माजी) थे । इसीलिये सत्यनाथी पंथ के अनुयाययियों को “ब्रह्मा के योगी” भी कहते हैं । इस पंथ का प्रधान पीठ उड़ीसा प्रदेश का पाताल भुवनेश्वर स्थान है ।*


*2॰ धर्मनाथ पंथ – इनकी संख्या 25 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक धर्मराज युधिष्ठिर माने जाते हैं । धर्मनाथ पंथ का मुख्य पीठ नेपाल राष्ट्र का दुल्लुदेलक स्थान है । भारत में इसका पीठ कच्छ प्रदेश धिनोधर स्थान पर हैं ।*


*3॰ राम पंथ - इनकी संख्या 61 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भगवान् श्रीरामचन्द्र माने गये हैं । इनका प्रधान पीठ उत्तर-प्रदेश का गोरखपुर स्थान है ।*


*4॰ नाटेश्वरी पंथ अथवा लक्ष्मणनाथ पंथ – इनकी संख्या 43 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक लक्ष्मणजी माने जाते हैं । इस पंथ का मुख्य पीठ पंजाब प्रांत का गोरखटिल्ला (झेलम) स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध दरियानाथ व तुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है ।*


*5॰ कंथड़ पंथ - इनकी संख्या 10 है । कंथड़ पंथ के मूल प्रवर्तक गणेशजी कहे गये हैं । इसका प्रधान पीठ कच्छ प्रदेश का मानफरा स्थान है ।*


*6॰ कपिलानी पंथ - इनकी संख्या 26 है । इस पंथ को गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चलाया । इस पंथ के प्रधान प्रवर्तक कपिल मुनिजी बताये गये हैं । कपिलानी पंथ का प्रधान पीठ बंगाल प्रदेश का गंगासागर स्थान है । कलकत्ते (कोलकाता) के पास दमदम गोरखवंशी भी इनका एक मुख्य पीठ है ।*


*7॰ वैराग्य पंथ - इनकी संख्या 124 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भर्तृहरिजी हैं । वैराग्य पंथ का प्रधान पीठ राजस्थान प्रदेश के नागौर में राताढुंढा स्थान है ।इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगनाथी पंथ से बताया जाता है ।*


*8॰ माननाथ पंथ - इनकी संख्या 10 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक राजा गोपीचन्द्रजी माने गये हैं । इस समय माननाथ पंथ का पीठ राजस्थान प्रदेश का जोधपुर महा-मन्दिर नामक स्थान बताया गया है ।*


*9॰ आई पंथ - इनकी संख्या 10 है । इस पंथ की मूल प्रवर्तिका गुरु गोरखनाथ की शिष्या भगवती विमला देवी हैं । आई पंथ का मुख्य पीठ बंगाल प्रदेश के दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा या गोरखकुई नामक स्थान हैं । इनका एक पीठ हरिद्वार में भी बताया जाता है । इस पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से भी समझा जाता है ।*


*10॰ पागल पंथ – इनकी संख्या 4 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री चौरंगीनाथ थे । जो पूरन भगत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब-हरियाणा का अबोहर स्थान है ।*


*11॰ ध्वजनाथ पंथ - इनकी संख्या 3 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक हनुमानजी माने जाते हैं । वर्तमान में इसका मुख्य पीठ सम्भवतः अम्बाला में है ।*


*12॰ गंगानाथ पंथ - इनकी संख्या 6 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री भीष्म पितामह माने जाते हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब में गुरुदासपुर जिले का जखबार स्थान है।*


*कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के इन बारह पंथों में छह पंथ और जुड़े - 1॰ रावल (संख्या-71), 2॰ पंक (पंख), 3॰ वन, 4॰ कंठर पंथी, 5॰ गोपाल पंथ तथा 6॰ हेठ नाथी ।*


*इस प्रकार कुल बारह-अठारह पंथ कहलाते हैं । बाद में अनेक पंथ जुड़ते गये, ये सभी बारह-अठारह पंथों की उपशाखायें अथवा उप-पंथ है । कुछ के नाम इस प्रकार हैं - अर्द्धनारी, अमरनाथ, अमापंथी। उदयनाथी, कायिकनाथी, काममज, काषाय, गैनीनाथ, चर्पटनाथी, तारकनाथी, निरंजन नाथी, नायरी, पायलनाथी, पाव पंथ, फिल नाथी, भृंगनाथ आदि*