पंच ज्ञानेन्द्रियाँ- कान, आँख, जिह्वा, नाक, त्वचाइस संसार में ज्ञात अज्ञात वस्तुओ की भरमार है ,आइये उन पर एक नज़र डालते है -
भगवान
सूर्य सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है
पृथ्वी ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन का अस्तित्व पाया जाता है
गणेश का दाँत -शिव और पार्वती पुत्र भगवान गणेश का ही नाम एकदन्त है। अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में उसका एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।
मल दोष -निष्काम कर्म से मल दोष दूर होता है
आकाश-- अन्तरिक्ष का वह भाग जो दिखाई देता है, वही आकाश है।
सतगुण-- सतोगुणी पुरुष अपने कर्म या बौद्धिक वृत्ति से रहता है |
प्रथम स्कंध -यज्ञ ,अध्ययन,,दान
माया (प्रकृति )-जड़ रूप
ऋग्वेद- सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रुप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है।
ब्रह्मचर्य-- ये मनुष्य के आयु के २५ वर्ष तक रहता था।इस आश्रम में विद्यार्थी अपना जीवन शिक्षा ग्रहण करने में व्यतीत करता हैं।
रामेश्वरम • रामेश्वरम में स्थित वेदान्त ज्ञानमठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। मठ के अन्तर्गत 'यजुर्वेद' को रखा गया है।
धर्म=,ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है।
साम, चालाकी
चिश्तिया सम्प्रदाय चिश्ती समुदाय के संस्थापक ख्वाजा अब इशहाक शामी चिश्ती ,हजरत अली के वंशज थे | खुरासान के चिश्तनगर में रहने का कारन वे चिश्ती कहलाये
कान== सुनने में सहायक
1. एक (One)
भगवान
सूर्य सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है
पृथ्वी ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन का अस्तित्व पाया जाता है
गणेश का दाँत -शिव और पार्वती पुत्र भगवान गणेश का ही नाम एकदन्त है। अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में उसका एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।
2.दो (Two)
दो मार्ग-
प्रवृत्ति मार्ग -भक्ति प्रधान धर्म,, गृहस्थ धर्म।
निवृत्ति मार्ग-त्याग भावना ही परिवृत्ति मार्ग की परिचालक है |
दो पक्ष-
शुक्ल पक्ष== - -अमावस्या के बाद चन्द्रमा की कलाएँ जब बढ़नी आरम्भ हो जाती हैं तब इसे शुक्ल पक्ष कहा जाता है।
दो उपासना पद्धति-
सगुण उपासना पद्धति -ईश्वर को सगुण रूप में स्वीकार कर पूजा अर्चना के माध्यम से की गयी जाती है।
निर्गुण उपासना पद्धति - ईश्वर अनादि, अनन्त है वह न जन्म लेता है न मरता है, इस विचारधारा से प्रेरित उपासना निर्गुण रूपी होती है |
3.तीन (Three)
तीन देव- इन्हें त्रिमूर्ति या त्रिदेव भी कहते है |
ब्रह्मा -ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं |
विष्णु - विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है।
महादेव -भगवान शिव को संहार देवता कहा जाता है \भगवान शिव को भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है।
अंत करण के तीन दोष
मल दोष -निष्काम कर्म से मल दोष दूर होता है
विक्षेप दोष -उपासन से विक्षेप दोष दूर होता है
आवरण दोष - पवित्र ज्ञान से आवरण दोष दूर होता है
तीन लोक -
आकाश-- अन्तरिक्ष का वह भाग जो दिखाई देता है, वही आकाश है।
पृथ्वी-- ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन का अस्तित्व पाया जाता है।
पाताल-- पाताल पृथ्वी के नीचे होते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार सात प्रकार के पाताल लोक होते हैं।
तीन गुण -
सतगुण-- सतोगुणी पुरुष अपने कर्म या बौद्धिक वृत्ति से रहता है |
रजगुण ---काम की प्रधानता
तमगुण---विद्रोही या क्रोध भावना का कारक
प्रजा पति के तीन पुत्र
देव - धर्म कार्य प्रधानता
असुर -अधर्म कार्य प्रधानता
मनुष्य -धर्म अधर्म दोनों का सम्मिलित रूप
धर्म के तीन स्कन्ध
प्रथम स्कंध -यज्ञ ,अध्ययन,,दान
तृतीय स्कन्ध - ब्रह्मचारी
द्वितीय स्कन्ध - तप
भेदोपासना के तीन भेद
माया (प्रकृति )-जड़ रूप
जीव -अंश ,भोक्ता
परमेश्वर -अंशी ,साक्षी
4.चार (Four)
चार वेद-
ऋग्वेद- सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रुप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है।
यजुर्वेद-यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं।
सामवेद -यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है।
अथर्ववेद- इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं।
चार वर्ण- एेतिहासिक रूप से आर्यों की वर्ण व्यवस्था में चार होते हैं-
ब्राह्मण -आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी
क्षत्रिय -धर्म रक्षक
वैश्य -व्यापारी
शूद्र -सेवक, श्रमिक समाज
चार आश्रम- हिन्दू धर्म में जीवन के ४ चार भाग किए गए हैं
ब्रह्मचर्य-- ये मनुष्य के आयु के २५ वर्ष तक रहता था।इस आश्रम में विद्यार्थी अपना जीवन शिक्षा ग्रहण करने में व्यतीत करता हैं।
गृहस्थ -गृहस्थाश्रम में अर्थ, मोक्ष, धर्म और काम ये चार प्रमुख ध्येय होते थे
वानप्रस्थ,- जब घर की जिम्मेदारियां ख़त्म हो जाती है, तब मनुष्य का काम धीरे धीरे अपना मन सामाजिक कार्य करने में लगता हैं और इसे वानप्रस्थाश्रम कहते हैं और ये मनुष्य के ५० से ७५ वर्ष के आयु तक रहता था।
संन्यास --जब मनुष्य की आयु ७५ वर्ष से ज्यादा हो जाती है तब इस आश्रम के अनुसार उसे जीवन व्यतीत करना होता हैं। इस आश्रम का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति का होता था।
चार धाम -
रामेश्वरम • रामेश्वरम में स्थित वेदान्त ज्ञानमठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। मठ के अन्तर्गत 'यजुर्वेद' को रखा गया है।
बद्रीनाथ •उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है
द्वारका •गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है
जगन्नाथ पुरी उत्तरांचल के बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है
चार कुंभ-- स्थल कुंभ पर्व का प्रति बारहवें वर्ष आयोजन होता है। वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे
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