Thursday, 29 December 2016

भस्म गायत्री,भगवा मंत्र,नाद जनेऊ मंत्र,गोरख गायत्री

fore more info visit https://shabarmantars.blogspot.in/2016/12/blog-post_29.htmlभस्म गायत्री

सत नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरूजी |
भभूत माता ,भभूत पिता ,भभूत तरण तारणी|
मानुषते देवता करे ,भभूत कष्ट निवार्णी |
सो भष्मती माई ,जहा पाई तहा रमाई|
आदके जोगी अनाद की भभूत सत के जोगी धर्म के पूत  |
अमृत झरे धरती फरे ,  सो फल माता गायत्री  चरै |
गायत्री माता गोवरी करे ,सूरज मुख सुखी अगन मुख जरी |
अष्ट टंक भभूत नाव टंक पाणी ,ईश्वर आणि पारवती छाणि |
सो भस्मति हस्तक ले मस्तक चढ़ी |
चढ़ी भभूत दिल हुआ पाक ,अलख निरंजन आपो आप |
इति भस्म गायत्री सम्पूर्ण भया|
नाथजी गुरु जी को आदेश | आदेश | आदेश |


भस्म गायत्री से अलख जगाने के बाद भगवा बाणा पहना जाता है |
इसके लिए भगवा बाणा मंत्र या गोरक्ष गायत्री का जप किया जाता है |

भगवा धारण करने का मंत्र

सात नमो आदेश | गुरूजी को आदेश |
ॐ गुरूजी ,ॐ सोहँ धूंधूकारा शिव शिव शक्ति ने मिल किया पसारा |
नख से चीर बहग बनाया ,रक्त रूप से भगवा आया |
अलख पुरुष ने धारण किया ,तब पीछे सिद्धो को दिया |
आवो सिद्धो धरो ध्यान ,भगवा मंत्र भया प्रणाम |
इतना भगवा मंत्र सम्पूर्ण भया |
आदेश आदेश सिद्ध गुरूजी को आदेश | आदेश आदेश |


इसके बाद नाद जनेऊ मंत्र का ध्यान करके जनेऊ धारण किया जाता है |

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नाद जनेऊ मंत्र

सत नमो आदेश गुरु जी को आदेश | ॐ गुरूजी |
आदि से शुन्य ,शुन्य में ओंकार ,आओ सिद्धो नाद बाँध का करो विचार |
नादे चन्द्रमा ,नादे सूर्य नाद रहा घट पिंड भरपूर |
नाद काया का पेखना ,बिन्द काया की राह |
नादे बिन्दे योगी तीनो एक स्वभाव |
बाजै नाद  भई प्रतीत, आये श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ अतीत |
नाद बाजै काल भागै ,ज्ञान टोपी गोरक्ष साजै |
डंकनी शङ्कनि टिल्ले बाल गुंथाई ,बाड़े घाटे टल्ल जागै |
सुन सकेसर पीर पटेश्वर नगर कोट महामाई टिल्ला शिवपुरी का स्थान
चार युग में मान मूल चक्र मूल थान |
पढ़ मंत्र योगी बजावै नाद ,छत्तीस भोजन अमृत कर पावै |
बिना मंतर योगी नाद बजावै ,तीन लोक मैं कही ठार नहीं पावै |
जो जाने नाद बिन्द का भेद ,आप ही करता ,आपही देव |
संध्या शिवपुरी का बेला अनंत कोटि सिद्धो का युग युग मेला |
इतना नाद जनेऊ मंत्र सम्पूर्ण भया |
श्री नाथ जी गुरूजी को  आदेश | आदेश | आदेश |


नाद जनेऊ मंत्र के बाद मृगछाल ,रुद्राक्ष ,माला, बीज माला या कोई अन्य माला धारण की जाती है |
इसके पश्चात् गोरक्ष गायत्री का स्मरण  किया जाता है |

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गोरख गायत्री 

सात नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरूजी |ओउम कारे शिव रूपी संध्या ने साध रूपी ,मध्यान्हे हंस रूपी ,हंस परमहंस द्वी अक्षर ,गुरु तो गोरक्ष ,काया तो गायत्री ,ॐ तो ब्रह्म ,सोऽहं तो शक्ति ,शुन्य तो माता ,अवगति तो पिता ,अभय पंथ अचल पदवी निरंजन गोत्र अलील वर्ण विहंगम जाती ,असंख परवर अनंत शाखा सूक्ष्म भेद , आत्म ज्ञानी ब्रह्मज्ञानी .श्री ॐ गोरक्ष नाथाय विद्यहे शून्य पुत्राय धी महि तन्नो गौरक्ष प्रचोदयात ,इतना गोरक्ष गायत्री पठ्यन्ते हारते पाप श्रूयते सिद्धि निश्चय |जपन्ते परम ज्ञान अमृतानंद मनुष्यते |नाथ जी गुरु जी को आदेश | आदेश | आदेश |ॐ ह्रीम श्रीं हूँ फट स्वाहाः |ॐ ह्रीम श्री गो गोरक्ष हूं फट स्वाहाः |ॐ ह्रीम श्री गो गोरक्ष निरंजनात्मने  हूं फट स्वाहाः |

इस प्रकिया के बाद महात्मा धुनें पर सभी को आदेश उठाते है |
फिर अपने कर्म की शुरुआत करते है |

fore more info visit https://shabarmantars.blogspot.in/2016/12/blog-post_29.htmlगोरक्ष जी की साधना के लिए उपयुक्त दिन 

गोरख नाथ जी की  पूजा केलिए श्रावण मास  का सोमवार उपयुक्त माना गया है |सोमवार ,बृहस्पतिवार  का दिन भी शुभ माना गया है |भाद्रपद ,आश्विन और कार्तिक मास की पूर्णिमा को भी शुभ माना गया है |वैशाख मास की एकादशी जो वरुथिनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है ,वह भी शुभ मानी जाती है |

Wednesday, 28 December 2016

सोलह संस्कार , Solah Sanskaar


सोलह  संस्कार – 

एक  परिचय -

शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना हमारे लिए आवश्यक माना गया है। मनुष्य जीवन में हर व्यक्ति को अनिवार्य रूप से सोलह संस्कारों का पालन करना चाहिए। यह संस्कार व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक अलग-अलग समय पर किए जाते हैं।

प्राचीन काल से इन सोलह संस्कारों के निर्वहन की परंपरा चली आ रही है। हर संस्कार का अपना अलग महत्व है। जो व्यक्ति इन सोलह संस्कारों का निर्वहन नहीं करता है उसका जीवन अधूरा ही माना जाता है।


सोलह संस्कारो का वर्णन 


1.गर्भाधान संस्कार  –

 यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है।ये सबसे पहला संस्कार है l बच्चे के जन्म से पहले माता -पिता अपने परिवार के साथ गुरुजनों के साथ यज्ञ करते हैं और इश्वर को प्रार्थना करते हैं की उनके घर अच्छे बचे का जन्म हो, पवित्र आत्मा, पुण्यात्मा आये l जीवन की शुरूआत गर्भ से होती है। क्योंकि यहां एक जिन्दग़ी जन्म लेती है। हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे, हमारी आने वाली पीढ़ी अच्छी हो उनमें अच्छे गुण हो और उनका जीवन खुशहाल रहे इसके लिए हम अपनी तरफ से पूरी पूरी कोशिश करते हैं। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि अगर अंकुर शुभ मुहुर्त में हो तो उसका परिणाम भी उत्तम होता है। माता पिता को ध्यान देना चाहिए कि गर्भ धारण शुभ मुहुर्त में हो। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि गर्भधारण के लिए उत्तम तिथि होती है मासिक के पश्चात चतुर्थ व सोलहवीं तिथि । इसके अलावा षष्टी, अष्टमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवस्या की रात्रि गर्भधारण के लिए अनुकूल मानी जाती है। गर्भधारण के लिए उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, अनुराधा, हस्त, स्वाती, श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र बहुत ही शुभ और उत्तम माने गये हैं l ज्योतिषशास्त्र में गर्भ धारण के लिए तिथियों पर भी विचार करने हेतु कहा गया है। इस संस्कार हेतु प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथि को बहुत ही अच्छा और शुभ कहा गया है l गर्भधारण  के लिए वार की बात करें तो सबसे अच्छा वार है बुध, बृहस्पतिवार और शुक्रवार। इन वारों के अलावा गर्भधारण हेतु सोमवार का भी चयन किया जा सकता है, सोमवार को इस कार्य हेतु मध्यम माना गया है। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि गर्भधारण उन स्थितियों में नहीं करना चाहिए जबकि जन्म के समय चन्द्रमा जिस भाव में था उस भाव से चतुर्थ, अष्टम भाव में चन्द्रमा स्थित हो। इसके अलावा तृतीय, पंचम या सप्तम तारा दोष बन रहा हो और भद्रा दोष लग रहा हो।

2.पुंसवन संस्कार  – 




गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। पुंसवन संस्कार के प्रमुख लाभ ये है कि इससे स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान की प्राप्ति होती है।इस संस्कार में गर्भ की स्थिरता के लिए यज्ञ किया जाता है l

उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म आएं, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। भक्त प्रह्लाद और अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। इस संस्कार के अंतर्गत यज्ञ में खिचडी की आहुति भी दी जाती है 3.सीमन्तोन्नयन संस्कार  – 

यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। भक्त प्रह्लाद और अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। इस संस्कार के अंतर्गत यज्ञ में खिचडी की आहुति भी दी जाती है

4.जातकर्म संस्कार –


इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है ताकि बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु हो।बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से गर्भस्त्रावजन्य दोष दूर होते हैं।नालछेदन के पूर्व अनामिका अंगूली (तीसरे नंबर की) से शहद, घी और स्वर्ण चटाया जाता है।
जब नवजात शिशु जन्म लेता है तब 1% घी, 4% शहद से शिशु की जीभ पर ॐ लिखते हैं | .
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जन्म के बाद 11वें या सौवें या 101 वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। सपरिवार और गुरुजनों के साथ मिल कर यज्ञ किया जाता है तथा ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है। बच्चे को शहद चटाकर सूर्य के दर्शन कराए जाते हैं। उसके नए नाम से सभी लोग उसके स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। वेद मन्त्रों में जो भगवान् के नाम दिए गए हैं, जैसे नारायण, ब्रह्मा, शिव - शंकर, इंद्र, राम - कृष्ण, लक्ष्मी, देव - देवी आदि ऐसे समस्त पवित्र नाम रखे जाते हैं जिससे बच्चे में इन नामों के गुण आयें तथा बड़े होकर उनको लगे की मुझे मेरे नाम जैसा बनना है l
5.नामकरण संस्कार – 

ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चे का नाम तय किया जाता है।जन्म के बाद 11वें या सौवें या 101 वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। सपरिवार और गुरुजनों के साथ मिल कर यज्ञ किया जाता है तथा ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है। बच्चे को शहद चटाकर सूर्य के दर्शन कराए जाते हैं।
उसके नए नाम से सभी लोग उसके स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
वेद मन्त्रों में जो भगवान् के नाम दिए गए हैं, जैसे नारायण, ब्रह्मा, शिव - शंकर, इंद्र, राम - कृष्ण, लक्ष्मी, देव - देवी आदि ऐसे समस्त पवित्र नाम रखे जाते हैं जिससे बच्चे में इन नामों के गुण आयें तथा बड़े होकर उनको लगे की मुझे मेरे नाम जैसा बनना है l

बच्चे को पहली बार घर से बाहर खुली और शुद्ध  हवा में लाया जाता है 6.निष्क्रमण संस्कार  –

 निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि शिशु दीर्घायु रहे और स्वस्थ रहे

     7.अन्नप्राशन संस्कार  –

 यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात 6-7 महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है।अन्नप्राशन संस्कार बच्चे को शुद्ध भोजन कराने का प्रसंग होता है। बच्चे को सोने-चांदी के चम्मच से खीर चटाई जाती है। यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात ६-७ महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है, इससे पहले बच्चा अन्न को पचाने की अवस्था में नहीं रहता l

8.मुंडन संस्कार –

 जब शिशु की आयु एक वर्ष हो जाती है तब या तीन वर्ष की आयु में या पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।



9.कर्णवेध संस्कार  – 

इस संस्कार में कान छेदे जाते है । इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है।

10.उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार  –

 उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ यानि यज्ञोपवित में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज प्राप्त होता है।

11.वेदारंभ संस्कार  –

 इसके अंतर्गत व्यक्ति को वेदों का ज्ञान दिया जाता है। वेद ज्ञान का अथाह भंडार व्यक्ति को शिक्षित करने म प्रयोग किया जाता है | प्रत्येक प्रकार की जानकारी शास्त्रो के माध्यम से दी जाती है |
 



12.समावर्तन संस्कार -

समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम या गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षों के लिए तैयार किया जाना।







13.विवाह संस्कार  – 

यह धर्म का साधन है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।





14. वानप्रस्थ संस्कार
50 वर्ष की आयु में मनुष्य को अपने परिवार की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जंगल में चले जाना चाहिए और वहां पर वेदों की 6 दर्शन यानी की षट-दर्शन में से किसी 1 के द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, ये संस्कार भी यज्ञ करते हुए किया जाता है और संकल्प किया जाता है की अब मैं इश्वर के ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे l



15. सन्यास संस्कार-


वानप्रस्थ संस्कार में जब मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर लेता है उसके बाद वो सन्यास लेता है, वास्तव में सन्यास पूरे समाज के लिए लिया जाता है , प्रत्येक सन्यासी का धर्म है की वो सारे संसार के लोगों को भगवान् के पुत्र पुत्री समझे और अपना बचा हुआ समय सबके कल्याण के लिए दे दे l सन्यासी को कभी 1 स्थान पर नही रहना चाहिए उसे घूम घूम कर साधना करते हुए लोगो के काम आना चाहिए, अब सारा विश्व ही सन्यासी का परिवार है, कोई पराया नही है l सन्यास संस्कार 75 की वर्ष की आयु में होता है पर अगर इस संसार से वैफाग्य हो जाए तो किसी भी आयु में सन्यास लिया जा सकता है l सन्यासी का धर्म है की वो धर्म के ज्ञान को लोगों को बांटे, ये उसकी सेवा है, सन्यास संस्कार करते समय भी यज्ञ किया जाता है वेद मन्त्र पढ़ते हुए और सृष्टि के कल्याण हेतु बाकी जीवन व्यतीत करने की प्रतिज्ञा की जाती है l



16.अंत्येष्टी संस्कार – 

अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम संस्कार। शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु यानि देह त्याग के बाद मृत शरीर अग्नि को समर्पित किया जाता है। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है।

Saturday, 24 December 2016

तुलसी पूजन मंत्र ,इतिहास ,प्रयोग , औषधि प्रयोग ,Holy Basil

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तुलसी का वैदिक इतिहास 

श्रीमद देवी भागवत पुराण में  प्रचलित है की एक बार भगवान शिव ने अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।



दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।
भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु मां ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहां से अंतध्यान हो गईं।
देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत ज़रूरी था।
इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा।
ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्चिछत हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।
भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का ज़रा आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।
इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को शिला  होने का श्राप दे दिया तथा स्वयं सति हो गईं। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, ‘हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।’

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कहा जाता है की, जिस घर में तुलसी होती हैं, वहां यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। गंगा व नर्मदा के जल में स्नान तथा तुलसी का पूजन बराबर माना जाता है। चाहे मनुष्य कितना भी पापी क्यों न हो, मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। तुलसी को हिंदू धर्म में देवी के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जिस घर के आंगन में तुलसी होती है वहां कभी अकाल मृत्यु या शोक नहीं होता है। माना जाता है कि तुलसी के प्रतिदिन दर्शन और पूजन करने से पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु जी की पूजा में तुलसी का सर्वाधिक प्रयोग होता है। तुलसी जी की पूजा में निम्न मंत्रों का प्रयोग कर जातक अधिक फल पा सकते हैं |प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर के आँगन में प्रायः तुलसी का पौधा लगा होता है यह हिंदू परिवार की एक महत्वपूर्ण पहचान भी है स्त्रियां इसके पूजन के द्वारा अपने सौभाग्य एवं वंश के समृद्धि की रक्षा करती हैं रामभक्त श्री हनुमान जब सीता माता की खोज में लंका गए तो वहाँ एक मात्र घर के आँगन में तुलसी का पौधा देख कर वे जान गए कि यह एक धर्मी का घर है व उन्होंने लंका दहन के समय में वह घर छोड दिया |तुलसी के जैसी धार्मिक एवं औषधीय गुण किसी अन्य पादप में नहीं पाए जाते हैं।।सात्विक भोजन पर मात्र तुलसी के पत्ते को रख देने भर से भोजन के दूषित होने का काल बढ़ जाता है जल में तुलसी के पत्ते डालने से उसमें लम्बे समय तक कीड़े नहीं पड़ते।तुलसी की मंजरियों में एक विशेष सुगंध होती है जिसके कारण घर में विषधर सर्प प्रवेश नहीं करते | शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधे मिलते है उनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से विद्यमान है |

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* श्वेत तुलसी बच्चों के कफ विकार, सर्दी, खांसी इत्यादि में लाभदायक है।* कफ निवारणार्थ तुलसी को काली मिर्च पाउडर के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।* गले में सूजन तथा गले की खराश दूर करने के लिए तुलसी के बीज का सेवन शक्कर के साथ करने से बहुत राहत मिलती।* तुलसी के पत्तों को काली मिर्च, सौंठ तथा चीनी के साथ पानी में उबालकर पीने में खांसी, जुकाम, फ्लू और बुखार में फायदा पहुंचता है।* पेट में दर्द होने पर तुलसी रस और अदरक का रस समान मात्रा में लेने से दर्द में राहत मिलती है। इसके उपयोग से पाचन क्रिया में भी सुधार होता है।* कान के साधारण दर्द में तुलसी की पत्तियों का रस गुनगुना करके डाले।* नित्य प्रति तुलसी की पत्तियां चबाकर खाने से रक्त साफ होता है।* चर्म रोग होने पर तुलसी के पत्तों के रस के नींबू के रस में मिलाकर लगाने से फायदा होता है।* तुलसी के पत्तों का रस पीने से शरीर में ताकत और स्मरण शक्ति में वृध्दि होती है।* प्रसव के समय स्त्रियों को तुलसी के पत्तों का रस देन से प्रसव पीड़ा कम होती है।* तुलसी की जड़ का चूर्ण पान में रखकर खिलाने से स्त्रियों का अनावश्यक रक्तस्राव बंद होता है।* जहरीले कीड़े या सांप के काटने पर तुलसी की जड़ पीसकर काटे गए स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है।* फोड़े फुंसी आदि पर तुलसी के पत्तो का लेप लाभदायक होता है।* तुलसी की मंजरी और अजवायन देने से चेचक का प्रभाव कम होता है।* सफेद दाग, झाईयां, कील, मुंहासे आदि हो जाने पर तुलसी के रस में समान भाग नींबू का रस मिलाकर 24 घंट तक धूप में रखे। थोड़ा गाढ़ा होने पर चेहरे पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से झाईयां, काले दाग, कीले आदि नष्ट होकर चेहरा बेदाग हो जाता है।* तुलसी के बीजों का सेवन दूध के साथ करने से पुरुषों में बल, वीर्य और संतोनोत्पति की क्षमता में वृध्दि होती है।* तुलसी का प्रयोग मलेरिया बुखार के प्रकोप को भी कम करता है।* तुलसी का शर्बत, अबलेह इत्यादि बनाकर पीने से मन शांत रहता है।* आलस्य निराशा, कफ, सिरदर्द, जुकाम, खांसी, शरीर की ऐठन, अकड़न इत्यादि बीमारियों को दूर करने के लिए तुलसी की जाय का सेवन करें

तुलसी पूजा के मंत्र 

तुलसी जी को जल चढ़ाते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-

find more about tulsi holy basil https://shabarmantars.blogspot.in/2016/12/holy-basil.htmlमहाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
इस मंत्र द्वारा तुलसी जी का ध्यान करना चाहिए -
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-  
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
धन-संपदा, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति के लिए तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करना चाहिए-
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
ॐ सुभद्राय नमः
ॐ सुप्रभाय नमः
find more about tulsi holy basil https://shabarmantars.blogspot.in/2016/12/holy-basil.html- मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

तुलसीस्तोत्रम्



जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रयबल्लाभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः॥1॥
नामस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके॥2॥



तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापाद्भ्योऽपि सर्वदा।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम्॥3॥
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम्।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्तेसर्व किल्बिषात्॥4॥



तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम्।_
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः॥5॥
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे॥6॥


find more about tulsi holy basil https://shabarmantars.blogspot.in/2016/12/holy-basil.htmlतुलस्या नापरं किंचिद्दैवतं जगतीतले।_
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसंगेन वैष्णवः॥7॥
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके॥8॥


तुलस्यां सकला देवा वसन्ति साततं यतः।अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन्॥9॥नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे।पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके॥10॥


इति स्तोत्रं पूरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः॥11॥
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया॥12॥


महालक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः॥13॥
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भुर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया॥14॥


find more about tulsi holy basil https://shabarmantars.blogspot.in/2016/12/holy-basil.htmlतुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे।_
नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये॥15॥


*।।श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।*

Friday, 23 December 2016

चमत्कारी महा-काली सिद्ध मन्त्र

भगवती काली की कृपा- प्राप्ति का मन्त्र

“ॐ सत् नाम गुरु का आदेश।
 काली-काली महा-काली, 
युग आद्य-काली,छाया काली, 
छूं मांस काली। चलाए चले, बुलाई आए,
 इति विनिआस।गुरु गोरखनाथ के मन भावे। 
काली सुमरुँ, काली जपूँ, काली डिगराऊ को मैं खाऊँ।
जो माता काली कृपा करे, मेरे सब कष्टों का भञ्जन करे।”

सामग्रीः 


लाल वस्त्र व आसन, घी, पीतल का दिया, जौ, काले तिल,शक्कर, चावल, सात छोटी हाँड़ी-चूड़ी, सिन्दूर, मेंहदी, पान, लौंग, सातमिठाइयाँ, बिन्दी, चार मुँह का दिया।



उक्त मन्त्र का सवा लाख जप ४० या ४१ दिनों में करे। पहले उक्त मन्त्र को कण्ठस्थ कर ले। शुभ समय पर
जप शुरु करे। गुरु-शुक्र अस्त न हों। दैनिक ‘सन्ध्या-वन्दन’ के अतिरिक्त अन्य किसी मन्त्र का जप ४० दिनों तक न करे। भोजन में दो रोटियाँ १० या ११ बजे दिन के समय ले। ३ बजे के पश्चात् खाना- पीना बन्द कर दे। रात्रि ९ बजे पूजा आरम्भ करे। पूजा का कमरा अलग हो और पूजा के सामान के अतिरिक्त कोई सामान वहाँ न हो। प्रथम दिन,कमरा कच्चा हो, तो गोबर का लेपन करे। पक्का है, तो पानी से धो लें। आसन पर बैठने से पूर्व स्नान नित्य करे। सिर में कंघी न करे। माँ की सुन्दर मूर्ति रखे और धूप-दीप जलाए।
जहाँ पर बैठे, चाकू या जल से सुरक्षा- मन्त्र पढ़कर रेखा बनाए। पूजा का सबसामान ‘सुरक्षा-रेखा’ के अन्दर
होना चाहिए। सर्वप्रथम गुरु-गणेश-वन्दना कर १माला (१०८) मन्त्रों से हवन कर। हवन के पश्चात् जप शुरु करे। जप- समाप्ति पर जप से जो रेखा-बन्धन किया था, उसे खोल दे। रात्रि में थोड़ी मात्रा में दूध-चाय ले सकते हैं। जप के सात दिन बाद एक हाँड़ी लेकर पूर्व-लिखित सामान (सात मिठाई, चूड़ी इत्यादि) उसमें डाले। ऊपर ढक्कन रखकर, उसके ऊपर चार मुख  दिया जला कर, सांय समय जो आपके निकट हो नदी, नहर या चलता पानी में हँड़िया को नमस्कार कर बहा दे। लौटते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। ३१दिनों तक धूप-दीप-जप करने के पश्चात् ७ दिनों तक एक बूँद रक्त जप के अन्त में पृथ्वी पर टपका दे और ३९वें
दिन जिह्वा का रक्त दे। मन्त्र सिद्ध होने पर इच्छित वरदान प्राप्त करे।




सावधानियाँ-


प्रथम दिन जप से पूर्व हण्डी को जल में सायं समय छोड़े और एक-एक सपताह बाद उसी प्रकार उसी समय सायं उसी स्थान पर, यह हाँड़ी छोड़ी जाएगी। जप के एक दिन बाद दूसरी हाँड़ी छोड़ने के पश्चात् भूत-प्रेत साधक को हर समय घेरे रहेंगे। जप के समय कार के बाहर काली के साक्षात् दर्शन होंगे। साधक जप में लगा रहे, घबराए नहीं। वे सब कार के अन्दर प्रविष्ट नहीं होंगे। मकान में आग लगती भी दिखाई देगी, परन्तु
आसन से न उठे। ४० से ४२वें दिन माँ वर देगी। भविष्य-दर्शन व होनहार घटनाएँ तो सात दिन जप के बाद ही ज्ञात होने लगेंगी। एक साथी या गुरु कमरे के बाहर नित्य रहना चाहिए। साधक निर्भीक व आत्म-बलवाला होना चाहिए।


संकट-निवारक काली-मन्त्र

“काली काली, महा-काली। इन्द्रकी पुत्री, ब्रह्मा की साली। चाबेपान, बजावे थाली। जा बैठी, पीपलकी डाली। भूत-प्रेत, मढ़ी मसान।जिन्न को जन्नाद बाँध ले जानी।तेरा वार न जाय खाली। चले मन्त्र,फुरो वाचा। मेरे गुरु का शब्द साचा।देख रे महा-बली, तेरे मन्त्रका तमाशा। दुहाई गुरु गोरखनाथकी।”

सामग्रीः

 माँ काली का फोटो, एक लोटा जल, एक चाकू, नीबू, सिन्दूर, बकरे की कलेजी, कपूर की ६ टिकियाँ, लगा हुआ पान, लाल चन्दन की माला, लाल रंग के पूल, ६ मिट्टी की सराई, मद्य।

विधिः 

पहले स्थान-शुद्धि, भूत-शुद्धि कर गुरु-स्मरण करे। एक चौकी पर देवी की फोटो रखकर, धूप-\ दीप कर, पञ्चोपचार करे। एक लोटा जल अपने पास रखे। लोटे प चाकू रखे। देवी को पान अर्पण कर, प्रार्थना करे- हे माँ! मैं अबोध बाल तेरी पूजा कर रहा हूँ। पूजा मे जो त्रुटि हों, उन्हें क्षमा करें।’ यह  प्रार्थना अन्त में और प्रयोग के समय भी करें।अब छः अङ्गारी रखे। एक देवी के सामने व पाँच उसके आगे। ११ माला प्रातः ११ माला रात्रि ९ बजे के पश्चात् जप करे। जप के बाद सराही में अङ्गारी करे व अङ्गारी पर कलेजी रखकर कपूर की टिक्की रखे।पहले माँ काली को बलि दे। फिर पाँचबली गणों को दे। माँ के लिए जो घी का दिया जलाए, उससे ही कपूर को जलाए और मद्य की धार निर्भय होकर दे। बलि केवल मंगलवार को करे। दूसरे दिनों में केवल जप करे। होली-दिवाली-ग्रहण में या अमावस्या को मन्त्र को जागृत करता रहे। कुल ४० दिन का प्रयोग है। भूत-प्रेत-पिशाच-जिन्न, नजर-टोना- टोटका झाड़ने के लिए धागा बनाकरदे। इस मन्त्र का प्रयोग करने वालों के शत्रु स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र

“डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका।तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर- धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-ज महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड- मुण्ड भण्डासुर खण्डनी, जय रक्त- बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत- यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”

विधि-

 नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः- सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं। 
महा-काली शाबर मन्त्र

“सात पूनम काल का, बारह बरस क्वाँर।एको देवी जानिए, चौदह भुवन- द्वार।।१द्वि-पक्षे निर्मलिए, तेरह देवन देव।अष्ट-भुजी परमेश्वरी, ग्यारह रुद्र सेव।।२सोलह कल सम्पूर्णी, तीन नयन भरपूर।दसों द्वारी तू ही माँ, पाँचों बाजे नूर।।३नव-निधी षट्-दर्शनी, पन्द्रह तिथी जान।चारों युग में काल का, कर काली!कल्याण।

सामग्रीः

 काली-यन्त्र तथा चित्र, भट-कटैया के फूल-७, पीला कनेर के फूल, लौंग, इलायची-प्रत्येक ५, पञ्च- मेवा, नीम्बू-३, सिन्दूर, काले केवाँच के बीज-१०८, दीपक, धूप, नारियल।
विधिः
 उक्त मन्त्र की साधना यदि भगवती काली के मन्दिर में की जाए, तो उत्तम फल होगा। वैसे एकान्त में या घर पर
भी कर सकते हैं। सर्व-प्रथम अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर श्रीकाली-यन्त्र और चित्र स्थापित करे। घी का चौ- मुखा दिया जलाए। पञ्चोपचार से पूजन करे। अष्ट-गन्ध से उक्त चौंतीसा-यन्त्र का निर्माण कर उसकी भी पञ्चोपचार से पूजा करें। पूजन करते समय भट-कटैया और कनेर पुष्प को यन्त्र व चित्र पर चढ़ाए। तीनों नीम्बुओं के ऊपर सिन्दूर का टीका या बिन्दी लगाए और उसे भी अर्पित करे। नारियल, पञ्च-मेवा, लौंग, इलायची का भोग लगाए,
लेकिन इन सबसे पहले गणेश, गुरु तथा आत्म-रक्षा मन्त्र का पूजन औरमन्त्र का जप आवश्यक है। ‘काली- शाबर-मन्त्र’ को जपते समय हर बार एक-एक केवाँच का बीज भी काली- चित्र के सामने चढ़ाते रहें। जप की समाप्ति पर इसी मन्त्र की ग्यारह आहुतियाँ घी और गुग्गुल की दे। तत्पश्चात् एक नीम्बू काटकर उसमें अपनी अनामिका अँगुली का रक्त
मिलाकर अग्नि में निचोड़े। हवन की राख, मेवा, नीम्बू, केवाँच के बीज और फूल को सँभाल कर रखे। नारियल
और अगर-बत्ती को मन्दिर में चढ़ा दे तथा एक ब्राह्मण को भोजन कराए।प्रयोग के समय २१ बार मन्त्र का जपकरे। प्रतिदिन उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करते रहने से साध की सभी कामनाएँ पूर्ण होती है।

उक्त मन्त्र के विभिन्न प्रयोगः

१॰ शत्रु-

बाधा का निवारणः अमावस्या के दिन १ नीम्बू पर सिन्दूर से शत्रु का नाम लिखे। २१ बार सात सुइयाँ उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित के नीम्बू में चुभो दे। फिर उसे श्मशान में जाकर गाड़ दे और उस पर मद्य की धार दे। तीन दिनों में  शत्रु बाधा समाप्त होगी।

२॰ मोहनः उक्त मन्त्र से सिन्दूर और

भस्म को मिलाकर ११ बार अभिमन्त्रित कर माथे पर तिलकलगाकर जिसे देखेंगे, वह आपके ऊपर मोहित हो जायेगा।

३॰ वशीकरणः

पञ्च-मेवा में से थोड़ा- सा मेवा लेकर २१ बार इस मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। इसे जिस स्त्री या पुरुष को खिलाएँगे, वहआपके वशीभूत हो जाएगा।

४॰ उच्चाटनः

 भट-कटैया के फूल १, केवाँच-बीज और सिन्दूर के ऊपर ११ बार मन्त्र पढ़कर जिसके घर में फेंक देंगे,
उसका उच्चाटन हो जाएगा।

५॰ स्तम्भनः

 हवन की भस्म, चिता की राख और ३ लौंग को २१ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित करके जिसके घर में गाड़ देंगे, उसका स्तम्भनहो जाएगा।

६॰ विद्वेषणः

 श्मशान की राख, कलीहारी का फूल, ३ केवाँच के बीज पर २१ बार मन्त्र द्वारा अभीमन्त्रित करके एक काले कपड़े में बाँध कर शत्रु के आने-जाने के मार्ग में या घर के दरवाजे पर गाड़ दे। शत्रुओं में आपस में ही भयानक शत्रुता हो जाएगी।

७॰ भूत-प्रेत-बाधाः

 हवन की राख सात बार अभिमन्त्रित कर फूँक मारे तथा माथे पर टीका लगा दे। चौंतिसा यन्त्र को भोज-पत्र पर बनाकर ताँबे के ताबीज में भरकर पहना दे।

८॰ आर्थिक-बाधाः 

महा- काली यन्त्र के सामने घी का दीपक जलाकर उक्त मन्त्र का जप २१ दिनों तक २१ बार करे।

“ॐ कङ्काली महा-काली, केलि-कलाभ्यां स्वाहा।”

विशेषः- यदि उक्त मन्त्र के साथ निम्न मन्त्र का भी एक माला जप नित्य किया जाए, तो मन्त्र अधिक शक्तिशाली होकर कार्य करता है।


Tuesday, 20 December 2016

गोरखनाथ जी स्नान मंत्र ,अलील गायत्री ,शिव गायत्री


गोरखनाथ जी को कलियुग में जागृत दैवीय शक्ति माना जाता है | गोरख नाथ जी योग व तंत्र मंत्र से सम्बंधित देवताओ व् साधुओ की श्रेणी में उच्च स्थान प्राप्त है |वे भगवान शंकर के अंश है ,इसलिए उनमे शक्ति का भंडार है | उपासना में मंत्र जप एक प्रमुख तरीका है जो सर्व जन उपयोग करता है | हम यहाँ विभिन्न स्त्रोतो से एकत्रित सूचनाओ का सम्मिश्रण करके आप तक जानकारी पंहुचाने का प्रयास कर रहे है ,आशा है आप इस कार्य में अपना सहयोग करेंगे | इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की सहायता के लिए आप संपर्क कर सकते है या किसी प्रकार की सुचना हम तक पंहुचाना चाहते तो सहर्ष स्वागत है | अब हम अपने  ब्लॉग के मुख्य वर्णित लेख पर आते है :-

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  साधक को किसी भी देवी देवता की उपासना करने के लिए मन को संतुष्ट करना अति आवश्यक है |,यदि मन में श्रद्धा नहीं होगी तो साधक अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पायेगा | उपासना के लिए साधक को सुबह चौथे पहर में अपने शरीर के अनुकूल आसान बनाकर बैठ जाये | ,आसान में सरीर को सीधा रखना आवश्यक है |

नहाने का मंत्र ( स्नान मंत्र )

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ॐ हर हर गंगे हर नर्मदे हर जटा शंकर |
काशी विश्वनाथ गंगे ,गंगा गोदावरी तीर्थ बडे प्रयाग |
छालाबड़ी समुद्र की पाप कटे हरिद्वार |
ॐ गंगेय ॐ यमुने चैव गोदावरी सरस्वती |
नर्मेदेसिन्धु कावेरी ,जल स्नान च करू|
सत्यशील दोय स्नान तृतीय गुरु वाचकं |
चतुर्थ क्षमा स्नान , पंचम दया स्नान |
ये पञ्च स्नान निर्मल नित प्रति करत गोरषबाला |
जो जानो ध्यान का भेद आपही कर्ता आपही देव ||



ये स्नान के दौरान बोले जाना वाला मंतर है,यह मंतर पढ़कर जल तर्पण करे |
इसके साथ साथ अलील  गायत्री तथा शिव गायत्री का भी पाठ किया जाता है |

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अलील गायत्री



सात नमो आदेश | गुरु जी को आदेश | ॐ गुरु जी |
 तन  मंजन  जल देवता , मन मंजन गुरु ज्ञान |
हाथ मंजन को धरती , अलख पुरुष का ध्यान |
जागो जल थल जागो अलील देव |
जोगी आया करम कूचा वसेडार्स पर्स की टेव |
अलील गायत्री सबसे न्यारी ,माता कुवारी पिता बृह्मचारी |
पीया अलील बांध बंध ,बल जोगी तिरहे कंध |
उलटंत अलील पलटंत काया जाती गुरु गोरखनाथ चलाया |
सेत पुरुष अलील निधन ,अविचल आसान निहचल ध्यान |
आद अलील अनाद अलील तारण अलील तरण अलील |
अलीलाय विद्यमहे माह अलीलाय धीमहि तन्नो अलील प्रचोदयात |
इति अलील गायत्री सम्पूर्ण  भया| अनंत कोटि सिद्धो में बैठकर श्री नाथजी गुरु ने कहाई |
श्री नाथ जी गुरु को आदेश | आदेश | आदेश |


इसके बाद भी जल तर्पण  करे |


शिव गायत्री

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Shiv in rain

सत नमो आदेश | आदेश गुरूजी को आदेश |
 ॐ  गुरु जी जल का दान ,जल का स्नान ,जल में ऊना ब्रह्मज्ञान |
 जल ही आये जल ही जाये ,जल ही जल में रह्या समय |
जल ही ऊँचा जल ही  नीचा ,उण पाणी सौ लीजे सींचा |
भुख्याकू  कु अन्न  प्यासे को पाणी ,जहाँ आये गुरु गोरख निर्वाणी |
 पीना पाणी उत्तम जात , जैसा दीवा वैसी बात |
जल में ब्रह्मा जल में शिव जल में शक्ति जल में जीव |
जल में धरती जल में आकाश जल में ज्योति जल में प्रकाश |
जल में निरंजन अवगति रूप ,जगी ज्योत अटल अनूप |
जहा से अपनी शिव गायत्री | तार तार माता शिव गायत्री |
अघोर पिंड पंडता रख ब्रह्मा विष्णु महेश्वर साख |
जपो शिव गायत्री ,सरे प्राणी पावै मोक्ष द्वार |
जोगी जपै जोप पैट ध्यावै राजा जपै राजपद पावै|
 गृही जपै भंडार भर्ती धुधपूत सत धर्म फलती |
जो जग फल मांगू फल होय ,शिव गायत्री माता सोय |
इतना शिव गायत्री मंत्र सम्पूर्ण भया |
गंगा गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र कौलागढ़ पर्वत अनुपान शिला कल्पवृक्ष |
तहा गादी पर बैठे श्री शम्भू जति गुरु गोरखनाथ ने नौ नाथ चौरासी सिद्ध अनंत कोट सिद्धो को कथा  पढ़ कर सुनाया |
सिद्ध गुरुवरों को आदेश | आदेश | आदेश |